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तज़ुर्बे (लघुकथा)

"लगता है कि अभी भी यह उड़ना नहीं सीख पायी।"


"अरे नहीं! दरअसल वह  उड़ना भूल चुकी है बुरे तज़ुर्बों से !" - नई सदी की हैरान, परेशान नवयौवना को घर की छत पर अनिर्णय की स्थिति में देख उसके इर्द-गिर्द हवा में उड़ते एक गिद्ध ने अपने साथी कौवे से कहा। कौवा उस गिद्ध को घूरने सा लगा।


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Samar kabeer on April 9, 2018 at 10:58am

इंटरनेट या गूगल एतिबार के क़ाबिल नहीं होते भाई ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 9, 2018 at 3:12am

मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मिथिलेश वामनकर साहिब और जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 9, 2018 at 3:11am

बहुत-बहुत शुक्रिया अनुमोदन, हौसला अफ़ज़ाई और सही जानकारी के लिए मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब। बोलचाल और इंटरनेट पर प्रचलित शब्द 'तजुर्बे' ही सही समझ रहा था। गूगल सर्च में भी नुक्ता वाला मिल रहा था।

Comment by Samar kabeer on April 8, 2018 at 4:38pm

जनाब शैख़ शहज़ाद यस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा तंज़,इस लघुकथा के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें ।

'तज्रिबा' शब्द का बहुवचन 'तजुर्बे' या 'तजुर्बों' नहीं है बल्कि "तज्रिबात" है,और इसमें 'ज' के नीचे बिंदी नहीं लगती ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 8, 2018 at 10:48am

आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहब..
कमाल का कटाक्ष    इस लघुतम लघु कथा में.. 
गिद्ध -कौवा ..सचमुच ..
बहुत बधाई 

Comment by Mohammed Arif on April 8, 2018 at 7:31am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                              बहुत ही कटाक्षपूर्ण लघुकथा , गहरी व्यंजना और संकेतात्मकता का संयोजन । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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