For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221 2121 1221 212

अन्याय के विरोध में जाने से डर लगा ।।

भारत का संविधान बताने से डर लगा ।।

यूँ ही बिखर न जाये कहीं मुल्क आपका ।

कोटे पे आज बात चलाने से डर लगा ।।

घोला है ज़ह्र अपने गुलशन में इस तरह ।

अब जिंदगी को और बचाने से डर लगा ।।

फर्जी रपट लिखा के वो अंदर करा गया ।

मैं बे गुनाह था ये बताने से डर लगा ।।

शोषित हुआ सवर्ण करे भी तो क्या करे ।

उसको तो अपना ज़ख्म दिखाने से डर लगा ।।

कैसी स्वतन्त्रता है ये आजाद मुल्क की ।

अब लोकतंत्र देश में लाने से डर लगा ।।

जो छीनता है रोटियां बच्चों के हाथ से ।

ऐसे वतन पे जान लुटाने से डर लगा ।।

लाचार कर दिया है सियासत की मार ने।

मुझको तो अपनी जात लिखाने से डर लगा ।।

जो राष्ट्र द्रोह कर रहे भारत को बंद कर ।

गुंडो से कत्ले आम कराने से डर लगा ।।

नामो निशां मिटाने की हसरत लिए हैं वे ।

उनसे तो आज हाथ मिलाने से डर लगा ।।

ठग कर गयी है खूब ये जम्हूरियत मुझे ।

अपना यहां वजूद बचाने से डर लगा ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी

Views: 445

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 10, 2018 at 1:17am

भाई डॉ आशुतोष नारायण मिश्र जी सप्रेम आभार । टाइप में त्रुटि है बन्धु ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 9, 2018 at 4:02pm

घोला है ज़ह्र अपने गुलशन में इस तरह ।अपने की जगह शायद आपने होगा बह्र की दृष्टि से 

आदरणीय ..इस रचना पर हार्दिक शुभकामनाएं सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 8, 2018 at 3:49pm

आ0 श्याम नरायण वर्मा जी हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 8, 2018 at 3:48pm

आ0 समर कबीर सर सादर नमन के साथ हार्दिक आभार 

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 8, 2018 at 3:47pm

आ0 सुशील सरन जी सादर आभार ।

Comment by Shyam Narain Verma on April 7, 2018 at 3:20pm
वाह ! बहुत खूब | सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई | सादर 
Comment by Samar kabeer on April 7, 2018 at 2:44pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on April 7, 2018 at 2:30pm

अन्याय के विरोध में जाने से डर लगा ।।

भारत का संविधान बताने से डर लगा ।।

यूँ ही बिखर न जाये कहीं मुल्क आपका ।

कोटे पे आज बात चलाने से डर लगा ।।

बहुत उम्दा आदरणीय नवीन मणि जी। .... आज के सन्दर्भ की जीवंत व्याख्या। हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी प्रस्तुति पर पुन: आता हूँ।  करूँगा मैं चर्चा सबुर आप…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी इस प्रस्तुति पर पुन: आऊँगा।  शुभातिशुभ"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।घुसें समझ कर सौड़ ,…See More
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service