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आज हद से गुजर गए कुछ लोग ।
फिर नजर से उतर गए कुछ लोग ।।

करके वादा यहां हुकूमत से ।
बेसबब ही मुकर गए कुछ लोग ।।

आशिकी उनके बस की बात कहाँ ।
चोट खाकर सुधर गए कुछ लोग ।।

अब कसौटी पे उनको क्या रखना ।
आजमाते ही डर गए कुछ लोग ।।

हर तरफ जल रही यहां बस्ती ।
कौन जाने किधर गए कुछ लोग ।।

छोड़िये बात अब मुहब्बत की
टूट कर फिर बिखर गए कुछ लोग ।।

क्या बताऊँ मैं किस तरह दिल में ।
दर्द बन कर ठहर गए कुछ लोग ।।

देखकर जुल्म बेटियों पर तो।
मुल्क में भी सिहर गए कुछ लोग ।।

---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on March 29, 2018 at 3:08pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन कुछ अशआर शिल्प की दृष्टि से कमज़ोर हैं,बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

मतले के सानी मिसरे में ' फिर' को "यूँ" कर लें ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 29, 2018 at 11:28am

आ0 मुहम्मद आरिफ साहब हार्दिक आभार

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 29, 2018 at 11:27am

आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार ।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 29, 2018 at 11:01am

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन जी। बेहतरीन गज़ल।

हर तरफ जल रही यहां बस्ती ।
कौन जाने किधर गए कुछ लोग ।।

Comment by Mohammed Arif on March 29, 2018 at 8:12am

देखकर जुल्म बेटियों पर तो।
मुल्क में भी सिहर गए कुछ लोग वाह!वाह!  बहुत ही शानदार मक्ता ।

       दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें आदरणीय नवीन मणि जी ।

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