For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुश्क़िलों में दिल के भी रिश्ते - सलीम रज़ा

2122 2122 2122 212

.

मुश्किलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए
ग़ैर से क्या  हो गिला अपने  बेगाने हो गए
-
चंद दिन के फ़ासले के बा'द हम जब भी मिले

यूँ लगा जैसे  मिले  हमको ज़माने  हो गए
-
पतझड़ों  के साथ मेरे दिन गुज़रते थे कभी
आप के आने से मेरे  दिन  सुहाने हो  गए
-
मुस्कराहट उनकी  कैसे भूल पाएगें  कभी
इक नज़र देखा जिन्हें औ हम दिवाने हो गए
-
आँख में शर्म-ओ-हया, पाबंदियाँ, रुस्वाईयां

उनके न  आने  के  ये अच्छे बहाने हो गए
-
आज भी उनकी अदाओं में वही है शोखियाँ 
आज फिर उनकी गली में आने जाने हो गए   
-
अब भी है रग रग में क़ायम प्यार की ख़ुश्बू रज़ा
क्या हुआ जो  ज़िस्म  के   कपड़े पुराने हो  गए

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 875

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on January 3, 2018 at 6:10pm
आदरणीय अजय तिवारी जी,
आपकी नवाज़िश के लिए शुक़गुज़ार हूँ.
Comment by Afroz 'sahr' on January 3, 2018 at 4:24pm
जवाब सलीम रजा़ साहिब उम्दा कलाम मुबारकबाद कु़बूल करें।मतले के सानी मिसरे में काफ़िया "बेगाने" की मात्रा गिर रही है क्या ये अरूज़ सम्मत है।दूसरे शे'र में "चंद दिन" एब ए तनाफ़ुर है।6टे शेर में "अदायों" को अदाओं करलें।मक्ते में "जब भी" तनाफ़ुर ए ख़फ़ी है जो कि चलता है।,,,,
Comment by Ajay Tiwari on January 3, 2018 at 3:55pm

आदरणीय सलीम  साहब, खूबसूरत अशआर हुए हैं. मक्ता ख़ास तौर से अच्छा लगा. हार्दिक बधाई.   

Comment by SALIM RAZA REWA on January 3, 2018 at 3:48pm
जनाब तस्दीक़ साहब,
आपकी ग़ज़ल पर शिर्कत और आपकी मशविरे के लिए बेहद ममनून हूँ....
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 3, 2018 at 2:30pm

जनाब सलीम रज़ा साहिब , उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

शेर 5 के सानी मिसरे में न को "ना" कर लीजिए और उला मिसरे में पवंदियाँ को पाबंदियां और रुसवाईयाँ को रुस्वाइयाँ कर लें ।

Comment by SALIM RAZA REWA on January 3, 2018 at 2:24pm
मोहित जी आपका बहुत धन्यवाद.
Comment by SALIM RAZA REWA on January 3, 2018 at 2:22pm
जनाब आरिफ साहब.
आपकी ग़ज़ल पर शिर्कत और आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया
Comment by Mohammed Arif on January 3, 2018 at 11:36am

आदरणीय सलीम रज़ा साहब आदाब,

                        बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र माकूल । ख़ासतौर से मक्ता अच्छा लगा । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
20 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
20 hours ago
Tilak Raj Kapoor updated their profile
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
21 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
21 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service