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जीवन
तुम हो 
 एक अबूझ पहेली,
न जाने फिर भी
क्यों लगता है
तुम्हे बूझ ही लूंगी.
पर जितना तुम्हें
हल करने की
कोशिश करती हूँ,
उतना ही तुम
उलझा देते हो.
थका देते हो.
पर मैंने भी ठाना है;
जितना तुम उलझाओगे ,
उतना तुम्हें
हल करने में;
मुझे आनन्द आएगा.
और
इसी तरह देखना;
एक दिन
तुम मेरे
हो जाओगे.

उपरोक्त कविता मौलिक व अप्रकाशित है (वीणा सेठी)

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Comment by Manoj kumar shrivastava on December 21, 2017 at 3:42pm

सकारात्मक भावों से युक्त इस रचना पर मेरी बधाई स्वीकार करें वीणा जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2017 at 8:55am

बहुत खूब हार्दिक बधाई,वीणाा जी ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 20, 2017 at 6:50pm

सुंदर कविता आदरणीया वीणा जी | हार्दिक बधाई |

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 19, 2017 at 9:21pm

हार्दिक बधाई आदरणीया वीणा जी. सुंदर अभिव्यक्ति के लिए.

Comment by Samar kabeer on December 19, 2017 at 5:18pm

मोहतरमा वीणा सेठी जी आदाब,सुंदर कविता है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'पर मैंने भी ठाना है'---"पर मैंने भी ठानी है"

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