For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तमाम अटकलों के बीच आयुषी की आकस्मिक मौत मीडिया, पुलिस और जांच एजेंसियों के लिए रोमांचक और रोमांटिक विषय बन चुकी थी। छान-बीन में जब उसकी ख़ास सहेली तसनीम का ख़ास ख़त खोजियों के हाथ लगा तो वह भी मीडिया में वायरल हो कर सार्वजनिक हुआ :

अज़ीज़म आयुषी,

हर बार किसी न किसी इशारे से आत्महत्या के इरादे ज़ाहिर करती हो। दुःख होता है तुम जैसी होनहार सहेली की ऐसी नकारात्मक सोच पर, इसलिए सोचा कि मैं अपनी आपबीती सुनाकर काश तुम्हें इस घोर अवसाद से बाहर ला सकूं।
मर्द जाति के 'उस' स्पर्श के अनुभव अपने ही नज़दीक़ी रिश्तेदारों, पड़ोसियों से मुझे उस समय से ही होने लगे थे, जब मैं यूकेजी में थी। 'फीमेल-मेस्कुलिन जेन्डर' में अंतर सीखने की उम्र में ही स्त्री-पुरुष की शारिरिक रचनाओं, क्रिया-प्रतिक्रियाओं, भाव-भंगिमाओं और उनकी नैसर्गिक, व्यावसायिक और व्यवहारिक प्रवृत्तियों का अनुभव और प्रशिक्षण सा मुझे लड़कों, प्रौढ़ों और बुज़ुर्गों द्वारा समय-समय पर येन-केन-प्रकारेण दिया जाने लगा था। 'पहली नज़र' के तथाकथित 'प्रेम-प्रसंगों' से गुजरते हुए 'पहली ग़लती' और 'पहले गर्भपात' तक और फिर तथाकथित 'प्रेम-विवाह' से 'तलाक़' की पीड़ा तक! .... और फिर तलाक़शुदा औरत से समाज-सेविका तक के ज़ोख़िम भरे सफ़र में कभी-कभी मेरा भी मन ख़ुदकशी करने को हुआ। लेकिन आयुषी, कुछ भी हो, सभी मर्द एक से नहीं होते! रॉबर्ट नाम के एक किरदार ने मेरे मरते किरदार को हर हाल में अॉक्सीजन दी, साहित्य जगत के बगीचे में मुझे पलने-खिलने दिया।

आयुषी! गणित जितना कठिन विषय है, उतना ही सरल भी। यह अगर उलझाता है, तो सुलझाता भी है। मेरे मां-बाप ने मुझे वैदिक गणित सीखने का मौक़ा दिया, तो अबैकस वाली तकनीक से सरल गणनायें सीखने का भी, लेकिन वैश्वीकरण और परिवर्तन के इस दौर में भारतीय समाज में लड़कियों की, औरतों की ज़िन्दगी का गणित जिस तरह तुमने सीखा, उसी तरह मैंने! लेकिन रॉबर्ट जैसे एक अच्छे मर्द की बदौलत मुझे एक गणितज्ञ बनने का मौक़ा मिला अपने सवालों के हल ढूंढने के लिए और दूसरों के भी।

मेरी बात मानो; जो कुछ भी बुरा हुआ हो, उसे भुलाने के लिए अपने आसपास सकारात्मक माहौल बना कर अपने में ऊर्जा पैदा करो; 'गणितज्ञ' सी बनो, 'आत्महंता' नहीं! मैं तो हूं न तुम्हारे संग! अल्लाह हाफ़िज़!

तुम्हारी ही,
तसनीम

पाठक-दर्शकों में कुछ नया जानने की जितनी उत्सुकता थी, उतनी सत्य और न्याय के लिए नहीं। ख़त भी समाचारों का मसाला बन गया। मौत के कारणों का सवाल पुलिस और जांच एजेंसियों के 'गणितज्ञों' को पैसों, धमकियों और ग़लत-बयानी के सूत्रों में उलझाता रहा।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 576

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 11, 2017 at 9:45pm

रचना पर इतना समय देकर अपनी जिज्ञासा के साथ मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह जी और जनाब समर कबीर साहिब। लघुकथा में कठिन शब्दावली संबंधित आपकी बात बिल्कुल सही व मानक अनुसार है। दरअसल इस रचना में पत्र-लेखिका एक साहित्यकार भी है, इसलिए मेरे विचार से उसके ख़त में कुछ वैसे शब्द शामिल होना स्वाभाविक है शिक्षित सहेली को लिखित में समझाने की प्रक्रिया में। सादर।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 11, 2017 at 9:39pm

मेरे लिए यह  बहुत ही समीक्षात्मक, ज्ञानवर्धक और प्रोत्साहक टिप्पणी है इस रचना पर। तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब।

Comment by Samar kabeer on December 5, 2017 at 3:28pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत अच्छी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

जनाब तेजवीर साहिब से सहमत हूँ ।

Comment by TEJ VEER SINGH on December 5, 2017 at 12:47pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।उत्तम लघुकथा। मेरी एक जिज्ञासा है।चूंकि आप लघुकथा क्षेत्र के वरिष्ठ विशेषज्ञ हैं इसलिये सबसे पहले आप से इस विषय पर मार्ग दर्शन की उम्मीद रखता हूँ।मेरी सोच है कि लघुकथा लेखन में हमें क्लिष्ट शब्दावली के प्रयोग से परहेज़ करना चाहिये।इससे लघुकथा की रोचकता नष्ट प्रायः हो जाती है।अच्छे विषय और सुंदर संदेश के बावज़ूद लघुकथा बोझिल हो जाती है।यह मेरी व्यक्तिगत रॉय है।गुणीजनों का क्या मत है,कह नहीं सकता।आप अपनी रॉय अवश्य दें। सादर।

Comment by Mohammed Arif on December 4, 2017 at 5:50pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                       इस लघुकथा को  दो भागों में देखना उचित होगा:-

 (1) ऊपरी तौर पर यह कथा शुरू-शुरू में एक  अबूझ पहेली-सी लगती है । फिर इसमें जिज्ञासा का संचार होता है । यही  इस कथा की ताक़त है । 

(2) यह कथा फिर अचानक दूसरे मोड़ पर ले जाती है । ज्ञात होता है कि यह यौन शोषण की शिकार लड़की की कहानी है जो बचपन में ही अपने इर्द-गिर्द  के मर्दों की हवस का शिकार होती है । इतने पर भी उसका जीवन नहीं थमता है । वह गणितीय जीवन को जीने और उसे सुलझाने के साथ-साथ पुन: जीतीं है । यह एक सकारात्मक दृष्टिकोण का संचार है । वह आयुषी को भी अपने पत्र में  जीने की बात कहती है ।यह अच्छी सोच का प्रतिनिधित्व है ।

         यह कथा किसी जासूसी उपन्यास की भाँति भी लगती है ।

                   हार्दिक-हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
5 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service