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ग़ज़ल: अंगारो से प्रीत निभाया करता हूँ

22 22 22 22 22 2
अंगारो से प्रीत निभाया करता हूँ ।
ख्वाब जलाकर रोज़ उजाला करता हूँ।।

एक झलक की ख्वाहिश लेकर मुद्दत से ।
मैं बादल में चांद निहारा करता हूँ ।।

एक लहर आती है सब बह जाता है ।
रेत पे जब जब महल बनाया करता हूँ ।।

शेर मेरे आबाद हुए एहसान तेरा ।
मैं ग़ज़लों में अक्स उतारा करता हूँ ।।


दर्द कहीं जाहिर न हो जाये मुझसे ।
हंस कर ग़म का राज छुपाया करता हूँ ।।

पूछ न मुझसे आज मुहब्बत की बातें ।
याद में तेरे वक्त गुजारा करता हूँ ।।

सब कुछ सुनकर बात वही वो टाल रहा ।
जिन बातों पर रोज इशारा करता हूँ ।।


फिर रिश्तों के बीच मिली हैं दीवारें ।
जिनको मैं दिन रात गिराया करता हूँ।।

मेरी उल्फ़त पर हँसते हैं लोग यहां ।
आसमान की हसरत पाला करता हूं ।।

अक्सर नंगे हो जाते हैं पाव मेरे ।
जब चादर से पांव निकाला करता हूँ ।।

तूफानों में साथ छोड़ उड़ जाएंगे ।
जिन पत्तों के साथ बसेरा करता हूँ ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 11, 2017 at 2:26pm

आदरणीय नवीन जी हर शेर उम्दा है कमाल की इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 8, 2017 at 10:26pm
आ0 अफरोज सहर साब शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 8, 2017 at 10:26pm
आ0 गुरुदेव कबीर साहब सादर नमन के साथ आभार ।
Comment by Samar kabeer on November 8, 2017 at 9:23pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'याद में तेरे वक़्त गुज़ारा करता हूँ'
इस मिसरे में 'तेरे'की जगह "तेरी"करना उचित होगा ।
'तूफ़ानों में साथ छोड़ उड़ जाएंगे'
ये मिसरा लय में नहीं है,इसे यूँ कर सकते हैं :-
'साथ न देंगे तूफ़ां में,उड़ जाएंगे'
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 5:48pm
"एक लहर आती है तो बह जाता है"
वो महल जो रेत पे मैं बनाया करता हूँ। यूँ कहिएगा,,,,
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 5:24pm
आदरणीय नवीन मणि जीआदाब "रेतों पर जब महल बनाया करता हूँ" में लफ़्ज़ " रेतों" का प्रयोग उचित नहीं है क्यूँ की
लफ़्ज़ "रेत" स्वंय ही बहुवचन होता है। लफ़्ज़ "महल" का वज़्न "12" होता है ना की "21" अत: "महल" की तक़्तीअ "12" वज़्न के मुताबिक कीजिएगा,, सादर,,
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 8, 2017 at 12:48pm
आ0 मुहम्मद आरिफ साहब शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 8, 2017 at 12:46pm
आ0 अफ़रोज़ सहर साहब विशेष आभार । एक लहर आती है तो बह जाता है । रेतों पर जब महल बनाया करता हूँ।। अब देखिए सर ।
Comment by narendrasinh chauhan on November 8, 2017 at 9:34am

खूब सुन्दर रचना 

Comment by Mohammed Arif on November 8, 2017 at 8:11am
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बहुत ही प्यारी ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । आदरणीय अफरोज़ सहर जी की बातों से मैं सहमत हूँ ।

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