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सार छंद -

गांधी के सपनों का भारत, कौन बनाए पूरा।
देखा था जो राष्ट्रपिता ने, सपना रहा अधूरा।।
जात-पाँत का भेद मिटेगा,अमन चैन आएगा।
श्रमजीवी घर में दो रोटी, सुबह शाम खाएगा।।1।।

सब हाथों को काम मिलेगा, हर घर में उजियारा।
कृषक और मजदूर कभी भी, फिरे न मारा-मारा।।
हस्तशिल्प लघु उद्योगों को, मूल्य मिलेगा पूरा।
चढ़े न कर्जा कभी कृषक पर, खाये भाँग धतूरा।।2।।

धर्म पंथ में बाँटा किसने, क्यों तकरार मचाई।
वितरण भी असमान हो रहा, बढ़ती जाती खाई।।
जैसे यहाँ रेवड़ी कोई, बाँट रहा हो सूरा।
इसीलिए बापू का अब तक, सपना रहा अधूरा।।3।।

धनवानों की और बढ़ी है, जहाँ निरंतर पूँजी।
वहीं निर्धनों के घर में अब, भाँग नहीं है भूँजी।।
अच्छे दिन कब तक आएंगे, कुछ तो बोल जमूरा।
बापू जी का देखा सपना, कब तक होगा पूरा।।4।।
[मौलिक व अप्रकाशित]
**हरिओम श्रीवास्तव**

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Comment by Hariom Shrivastava on November 13, 2017 at 7:09pm
आदरणीया Dr.Prachi Singh जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ। आपका हार्दिक आभार।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 6, 2017 at 8:52pm
बहुत ही सुन्दर यथार्थपरक रचना हुई आदरणीय..
Comment by Samar kabeer on November 5, 2017 at 8:53pm
जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब,बहुत उम्दा सारछन्द लिखे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on November 5, 2017 at 7:42am
आदरणीय हरिओम जी आदाब, दर्द-पीड़ा, आशा, साथ लेकर चलने की बात और साथ ही विकास सपनों के साकार करने की सामयिक रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Hariom Shrivastava on November 3, 2017 at 11:51pm
आदरणीया Rajesh Kumari जी,आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ। इस उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार।
Comment by Hariom Shrivastava on November 3, 2017 at 11:49pm
आदरणीय Sushil Sarana जी,आपकी विशद व समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ। इस उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2017 at 7:44pm

वाह बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुती दी है सार छंद में आद० हरिओम श्री वास्तव जी बहुत बहुत बधाई   

Comment by Sushil Sarna on November 3, 2017 at 7:39pm

धर्म पंथ में बाँटा किसने, क्यों तकरार मचाई।
वितरण भी असमान हो रहा, बढ़ती जाती खाई।।
जैसे यहाँ रेवड़ी कोई, बाँट रहा हो सूरा।
इसीलिए बापू का अब तक, सपना रहा अधूरा।।3।।

वाह आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी सपनों के भारत का आपने वो शब्द चित्र खींचा है कि वर्तमान को उन बिखरते सपनों और अधूरे सपनों पर शर्मिंदगी होनी चाहिए। हालात को आईना दिखाने हेतु आपका हार्दिक आभार एवं श्रेष्ठ सृजन के लिए हार्दिक बधाई सर जी।

Comment by Hariom Shrivastava on November 3, 2017 at 6:00pm
आदरणीया Dr.Prachi Singh जी,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ। इस हेतु आपका हार्दिक आभार।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 3, 2017 at 5:53pm

सार छंद में बहुत खूबसूरत समसामयिक प्रस्तुति आ० हरिओम श्रीवास्तव जी 

सचमुच भारत की तस्वीर को दो रंगों में बाँट देने वाली खाई को मिटना ही चाहिए , बापू का ही क्या आम जन का भी यही ख्वाब है जिसे पूरा होना चाहिए 

प्रस्तुति पर बधाई प्रेषित है 

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