For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पगलाया विश्वास

आँसुओं-सिंची आस्था

हर धूल भरी पगडण्डी पर अब मानो

फैले हैं पूर्तिहीन स्वप्नों के श्मशान

अकुलाते अनुभवों के कांटेदार गहन सत्य

तकलीफ़ भरे गड्ढों में चिन्ता की छायाएँ

रहस्यात्मक अहातों के उस पार

अन्धकार-विवरों में होगी यकीनन

अनबूझे सपनों की अनबूझी बेचैनी

लौट आएँगी अनायास असंतोष भरी

स्वाभाविक  हमारी  पुरानी  वेदनाएँ

इस पर भी अनजाने-अनपहचाने, प्रिय

न जाने किस-किस आकाशीय मार्ग से

चली आती हैं झोली में सहज कभी-कभार

अपरिभाषणीये कोमल मामूली सचाईयाँ

हृदय-प्राण-सी  सुकुमार  खुशियाँ  अपार

हमारे  ज़िद्दी  स्वप्नों  के  अर्थ  व्यर्थ

किसी टूटी-बिखरी तस्वीर के टुकड़ों-से सही

धूप-तपी राहों पर धूल के कितने बगूले सही

पर उँंगली-पकड़ चलते बच्चे-सा विश्वास है मुझको

आज भी  "तुम्हारे"  सहज भोले  विश्वास  पर, प्रिय

प्राण-प्रिय, मेरी प्राण-स्वप्न

आ चल, मेरे  साथ  चल

अभी बाकी है मेरा पगलाया विश्वास 

सुन मेरी बेचैन ज़िन्दगी

तू  अभी  किवाड़  बन्द  न  कर

               ------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 962

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on November 5, 2017 at 9:16pm

//रचना शैली और भाव विवेचना अद्भुत है//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहित जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 4, 2017 at 7:14pm

तू  अभी  किवाड़  बन्द  न  कर------------------------------- लम्बी प्रस्तावना के बाद  अटूट विश्वास का सच ------------ यह आख़िरी पंक्ति ही अपने आप में  एक पूर्ण कविता है .  आपकी कवितायें  मन की सह सा गीला कर  देती है . जय हो . सादर .

Comment by vijay nikore on November 4, 2017 at 12:27pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय आशुतोष जी।

Comment by Sushil Sarna on November 3, 2017 at 7:33pm

प्राण-प्रिय, मेरी प्राण-स्वप्न
आ चल, मेरे साथ चल
अभी बाकी है मेरा पगलाया विश्वास
सुन मेरी बेचैन ज़िन्दगी
तू अभी किवाड़ बन्द न कर

वाह सर वाह ... अंतर्मन के भावों का अनुपम सृजन .... सृजन का अंतिम पड़ाव सृजन के आत्मा है ... मजा आ गया सर ... हार्दिक हार्दिक बधाई सर।

Comment by vijay nikore on November 3, 2017 at 5:50pm

//सुंदर भावों का स्फुटन जो अंतर्रात्मा को भी छू गया//

.

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।

Comment by vijay nikore on November 3, 2017 at 6:47am

//बहुत ही बेहतरीन कविता का सृजन करके मन मोह लिया//

.

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय डा० छोटेलाल सिहं जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 2, 2017 at 8:22pm
अद्भुत भावों का समावेश किया है आदरणीय विजय जी..वाह आनंद आ गया..हार्दिक बधाई
Comment by narendrasinh chauhan on November 2, 2017 at 5:46pm

बहुत सुंदर रचना

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 1, 2017 at 9:43pm
आदरणीय विजय सर रचना को पढ़कर सुखद लगा इस रचना पर हार्दिक बधाई सादर
Comment by Mohammed Arif on November 1, 2017 at 8:29pm
आदरणीय विजय निकोर जी आदाब,सुंदर भावों का स्फुटन जो अंतर्रात्मा को भी छू गया । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुण्डलिया छंद  _____ सावन रिमझिम आ गया, सड़कें बनतीं ताल। पैदल लोगों का हुआ, बड़ा बुरा है…"
28 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुण्डलिया * पानी-पानी  हो  गया, जब आयी बरसात। सूरज बादल में छिपा, दिवस हुआ है रात।। दिवस…"
11 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"रिमझिम-रिमझिम बारिशें, मधुर हुई सौगात।  टप - टप  बूंदें  आ  गिरी,  बादलों…"
18 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हम सपरिवार बिलासपुर जा रहे है रविवार रात्रि में लौटने की संभावना है।   "
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुंडलिया छंद +++++++++ आओ देखो मेघ को, जिसका ओर न छोर। स्वागत में बरसात के, जलचर करते शोर॥ जलचर…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुंडलिया छंद *********** हरियाली का ताज धर, कर सोलह सिंगार। यौवन की दहलीज को, करती वर्षा पार। करती…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम्"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
Wednesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service