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ग़ज़ल -- दूर कर बद-गुमानी मेरी // दिनेश कुमार

212---212---212

दूर कर बदगुमानी मेरी
ख़त्म हो सरगरानी मेरी

मेरे जीवन से तुम क्या गए
खो गई शादमानी मेरी

अब न आएगी ये लौटकर
जा रही है जवानी मेरी

बीती बातों पे ये बारहा
व्यर्थ की नोहा ख़्वानी मेरी

ग़म के दरिया में रक्खा है क्या
भूल जाओ कहानी मेरी

गुल खिलाएगी कोई नया
एक दिन हक़-बयानी मेरी

ऐ मेरे जिस्म ! ऊबा हूँ मैं
अब न कर मेज़बानी मेरी

मौलिक व अप्रकाशित


सरगरानी-नाराज़गी
शादमानी-ख़ुशी
नोहा ख़्वानी-रोना पीटना,मातम करना

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 31, 2017 at 11:44am

आ दिनेश कुमार जी बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हुई है | मुबारकबाद स्वीकार करें |

Comment by दिनेश कुमार on October 31, 2017 at 6:29am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. अजय तिवारी साहब।
Comment by दिनेश कुमार on October 31, 2017 at 6:28am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. बृजेश साहब।
Comment by दिनेश कुमार on October 31, 2017 at 6:27am
आपकी मुहब्बतों को दिल से सलाम आ. समर सर। नवाज़िश
Comment by दिनेश कुमार on October 31, 2017 at 6:26am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. आरिफ़ साहब।
Comment by दिनेश कुमार on October 31, 2017 at 6:25am
बहुत शुक्रिया आ. अफ़रोज़ सहर साहब।
Comment by Ajay Tiwari on October 31, 2017 at 1:17am

आदरणीय दिनेश जी,

छोटी बहर में बेहतरीन शेर निकाले हैं. हार्दिक शुभकामनाएं.

सादर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 30, 2017 at 8:42pm
बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल हुई..सादर बधाई
Comment by Samar kabeer on October 29, 2017 at 9:11pm
जनाब दिनेश जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Mohammed Arif on October 29, 2017 at 5:48pm
आदरणीय दिनेश कुमार जी आदाब, बहुत ही प्यारी ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद देता हूँ क़ुबूल करें ।

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