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ख़त हमारे अगर जलाता है ; ग़ज़ल नूर की

२१२२/ १२१२/ २२ (११२)
ख़त हमारे अगर जलाता है
राख दुनिया को क्यूँ दिखाता है.
.
हम को उम्मीद है तो ग़ैरों से,
कौन अपनों के काम आता है?
.
सुन रखी होगी आग जंगल की
क्यूँ शरर को हवा दिखाता है.
.
शम्स मुझ सा शराबी है शायद 
शाम ढलते ही डूब जाता है.
.
ज़र्द चेहरा है बाल बिखरे हैं
इस तरह कौन दिल लगाता है.
.
देख! दुनिया का कुछ नहीं होगा
ख्वाहमखाह इस में सर खपाता है.
.
इस पे चलता है रब्त का धंधा
कौन क्या है औ क्या कमाता है.
.
“नूर” जुगनू सही मगर फिर भी
तीरगी को तो मुँह चिढ़ाता है.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक/अप्रकाशित 

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Comment by नाथ सोनांचली on October 25, 2017 at 1:09pm
ख़त हमारे अगर जलाता है
राख दुनिया को क्यूँ दिखाता है.
.
हम को उम्मीद है तो ग़ैरों से,
कौन अपनों के काम आता है

वआह वाह वाह, बेहतरीन अशआर से सजी खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद आद0 नीलेश भाई जी। सादर
Comment by Samar kabeer on October 25, 2017 at 12:01pm
'ख्वाहमख्वाह सर खपाता है'
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2017 at 11:25am

शुक्रिया आ. महेंद्र जी 

मिसरा दुरुस्त कर लेता हूँ ...जल्दबाज़ी में चूक गया 
सादर  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2017 at 8:33am

धन्यवाद आ. डॉ छोटेलाल जी 

Comment by Mahendra Kumar on October 25, 2017 at 8:32am

वाह! क्या शानदार ग़ज़ल है सर. मतला तो ग़ज़ब का है. दिल से ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए. 

एक जिज्ञासा : //ख्वाहमखाह सर खपाता है.// इस मिसरे की तक्तीअ क्या होगी सर?

सादर.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2017 at 8:29am

शुक्रिया आ. सलीम साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2017 at 8:29am

शुक्रिया आ. दिनेश भाई जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2017 at 8:29am

शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ साहब 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 24, 2017 at 9:21pm
नीलेश जी ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई.
मतला के लिए पुनः बधाई.
Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 24, 2017 at 6:06pm
आदरणीय नीलेश जी उम्दा भाव के साथ आपने बेहतरीन गजल लिखी ,गजल की हर पंक्तियां मन को आकर्षित कर रही हैं, इस अनमोल रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई

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