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'ग़ालिब'की ज़मीन में एक ग़ज़ल

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन

दूर कितनी शादमानी और है
कुछ दिनों की जाँ फिशानी और है

मेरे फ़न की दाद सबने दी मुझे
आपकी बस क़द्रदानी और है

हो चुकीं सब मौत की तैयारियाँ
दोस्तों की नोहा ख़्वानी और है

है ख़बर सबको बहादुर वो नहीं
उसकी वज्ह-ए-कामरानी और है

दास्तान-ए-इश्क़ तो तुम सुन चुके
ज़िन्दगानी की कहानी और है

दोस्तों से तो मुआफ़ी मिल गई
मुझको ख़ुद से सरगरानी और है

लग रहा है उनकी बातों से "समर"
उनके दिल में बदगुमानी और है
---
शादमानी-ख़ुशी
जाँ फिशानी-कोशिश
नोहा ख़्वानी-रोना पीटना,मातम करना
कामरानी-जीत
सरगरानी-नाराज़गी
समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Afroz 'sahr' on October 22, 2017 at 6:22pm
आली जनाब समर कबीर साहब निहायत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही आपने शेर दर शेर दिल बाग़ बाग़ हो गया हर इक शेर अपने आप में लाजवाब है।दिल की गहराइयों से मुबारकबाद पेश कपता हूँ सादर,,,,
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 22, 2017 at 5:50pm
बड़ी ही खूब ग़ज़ल कही आदरणीय..सादर
Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 22, 2017 at 3:07pm

आदरणीय समर कबीर साहब ,आदाब बहुत गज़ब की ग़ज़ल  हुई है | है तो यह ग़ज़ल फिर भी मेरा विचार है तीसरा शेर को न रखते तो अच्छा होता | हम तो आपकी लम्बी आयु की दुआ करते है | आदाब  

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 22, 2017 at 2:27pm
वाहहह आ0 समर कबीर जी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर बधाई पेश है।
दाद की हक़दार तो है ही गज़ल
पर समर जी की निशानी और है।
Comment by दिनेश कुमार on October 22, 2017 at 2:09pm
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है आ. समर साहब। हर शेर पढ़ने पर दिल से वाह निकली। मुबारकबाद सर।

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