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तब सिवा परमेश्वर के औ'र जला है कौन-----गज़ल, पंकज मिश्र

2122 2122 2122 2122

धीरे धीरे दूर दुनिया से हुआ है कौन आख़िर
हौले हौले तेरी यादों में घुला है कौन आख़िर

आग के शोले जले जब भी हुआ उत्पात तब तब
इक सिवा परमेश्वर के औ'र जला है कौन आख़िर

ग्रन्थ लाखों और पढ़ने वाले अरबों लोग तो हैं
पर मुझे मिलता नहीं पढ़ कर जगा है कौन आख़िर

माँ पिता गुरु के चरण रज से रहा जो दूर है वो
पत्थरों के घर में प्रभु से मिल सका है कौन आख़िर

इक मधुर अहसास खश्बू से भरी है साँस 'पंकज'
धड़कनों से रागिनी बन कर मिला है कौन आख़िर


मौलिक अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 15, 2017 at 9:56pm
उम्दा ग़ज़ल हुई आदरणीय..
Comment by Mohammed Arif on October 15, 2017 at 7:46am
आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी आदाब, बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । हर शे'र माकूल ।शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की बातों का संज्ञान लें ।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 14, 2017 at 8:43pm

आदरर्णीय पंकज कुमार मिश्रा जी आदाब , बढिया  ग़ज़ल हुई  है परन्तु आ समर साहब जी ने जो बताया उससे मुझे भी कुछ सिखने को मिली |

Comment by Samar kabeer on October 14, 2017 at 2:36pm
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
ग़ज़ल अपनी ग़ज़लियात की वजह से ग़ज़ल है, और आपकी ये ग़ज़ल बह्र के हिसाब से तो ठीक है,लेकिन इसे लय नहीं मिल पाई है,और उसका कारण है मिसरे के अंत का 21अगर इस 21 को 212 कर लें तो ग़ज़ल उम्दा हो सकती है,मिसाल के तौर पर :-
'धीरे धीरे दूर दुनिया से हुआ ये कौन है
हौले हौले तेरी यादों में घुला ये कौन है'
'इक मधुर अहसास ख़ुशबू से भरी है साँस भी
धड़कनों से रागिनी बनकर मिला ये कौन है'
इस तरह सभी अशआर में एक 2 बढ़ालें,ग़ज़ल खिल उठेगी ।

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