For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हसरतें, फ़ितरतें और तिजारतें (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"मेरे देशवासियों, देश बदल रहा है! कुछ ही सालों में हम सब कुछ बदल डालेंगे!"
छोटे-मोटे नेताओं के बाद अब बड़े नेताजी मंच पर सीना तान कर भाषण दे रहे थे। मंचासीन सेवकों के सीने भी तन चुके थे। थकी हुई जनता उन्हें सुन रही थी।
कुछ जुमले छोड़ने के साथ ही नेताजी अपनी हथेली जनता की ओर करते हुए बोले - "भाइयों और बहनों, मेरे मित्रों! आपके द्वारा चुना गया आपका सच्चा सबसे बड़ा सेवक यानी मैं! मैं पुरानी लकीरें नहीं पीटता, नई लकीरें खींचता हूं। ये हथेली, आपकी हथेली, हथेली नहीं, भारत है भारत!! इसमें आपको भी नई और बड़ी लकीरें बनानी हैं, मेरी तरह!"
जनता अपनी-अपनी हथेलियों को, उनमें बनी रेखाओं को देखने लगी! कुछ किसानों की आंखें नम हो गईं। कुछ मुफ़लिस-फ़कीर लकीरों को घूरने लगे। कोई अपने भाग्य को कोस रहा था, कोई हथेली पर भाग्य रेखा ढूंढ रहा था। कुछ एक-दूसरे को अपनी कटी-फटी, भद्दी सी हथेली दिखाने लगे। कुछ युवा अपनी हाथों की लकीरों को देख कर हंस रहे थे। फिर सब मंच की ओर देखने लगे।
नेताजी बोल रहे थे -"अब तक के संघर्षों और शोषण से आप अपने हाथों और हथेलियों की जो हालत आप देख रहे हैं न, ये उनकी बदौलत है, जिनसे आप धोखे खाते आये हैं! हमारी सत्ताधारी पार्टी यानी मैं! मैं आपकी हथेलियों की सारी रेखाएं बदल डालूंगा।"
"क्यों भैया, ऐसे हाथों की ऐसी लकीरें भी आजकल बदल जाती हैं क्या!" एक परेशान हाल आदमी ने दूसरे से पूछा।
"जानते नहीं, ये नेताजी अमेरिका, जापान और जाने कहां-कहां से जाने क्या-क्या लेकर आये हैं!" उनके पीछे से आवाज़ आई।
"तो क्या ये इन लकीरों पर ट्रेनें चलायेंगे या ब्लेड और लाठियां?" एक व्यक्ति बड़बड़ाने लगा।
तालियों की आवाज़ों के बीच उधर भाषण जारी था।
"मेरे साथियों, वर्तमान की चिंता में हम भारत का भविष्य दांव पर नहीं लगा सकते!" नेताजी ने चारों ओर हथेली लहराने के बाद अपनी छाती ठोककर कहा।
"किसानों, औरतों और बच्चों को दांव पर लगा सकते हैं !" एक युवा झुंझलाकर बोला।
"अरे चलो यार यहां से, ये तो फेरीवाला बाबा है; अच्छी लकीरों वाला है!" दूसरा युवक खड़े हो कर अपनी हथेलियों को मलने लगा।
"मुझे भी ले चलो बेटा! दरअसल यह भी लकीर का फकीर है, पर है अंग्रेज़ों जैसा फितरती, तिजारती!" एक बुज़ुर्ग ने उस युवक का हाथ थाम कर कहा।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 713

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2017 at 4:21pm
रचना पर समय देकर अनुमोदन, समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब राज़ नवादवी साहब।
Comment by राज़ नवादवी on October 9, 2017 at 7:58pm

आदरणीय शेख़ शहजाद साहब, सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें. राजनीति को प्रशासन नीति बनना होगा, राजनीति को रणनीति में बदलना होगा, अन्यथा देश को चलाने वाले तथाकथित पुरोधा इसी तरह लोगों के भाग्य चलाया करेंगे. अब तक का इतिहास गवाह है. सरकार को एग्ज़ेक्युशन से गवर्नेंस की ओर बढ़ना ही होगा. राजनीति जब तक शुद्ध सेवा एवं त्याग के भाव से, धर्म एवं जातिगत प्रभावों से मुक्त होकर, नहीं की जायेगी तब तक शोषक और शोषित बने रहेंगे. मैं जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब के इस कथन से सहमत नहीं हूँ कि यह कहानी देश के प्रधान सेवक को केंद्र में रखकर लिखी गई होगी. सादर !

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2017 at 7:04pm
रचना पर समय देकर हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सलीम रज़ा रेवा साहब, जनाब समर कबीर साहब, जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहब और जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब।

शीर्षक में नयापन देने के कारण भी ऐसा हो जाता है। /लकीर का फ़कीर/लकीर के फ़कीर जैसे शीर्षक बहुत आम हो चुके हैं। फेरीवाला /हसरतें... आदि एक शब्द वाले शीर्षक भी विकल्प थे। कृपया आप भी कोई अच्छा सा नवीनतम शीर्षक सुझाइयेगा।

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' मेरे विचार से इस रचना में अप्रत्यक्ष रूप से काफी कुछ अनकहे में छोड़ने की कोशिश की गई है, फिर भी आपके इस सुझाव पर और ध्यान दूंगा। बहुत-बहुत शुक्रिया हिदायत हेतु।
Comment by Mohammed Arif on October 8, 2017 at 7:51am
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, सामयिक प्रसंग । देश के प्रधान सेवक को केंद्र में रखकर जो लघुकथा लिखी है उम्दा है । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की बातों पर ग़ौर करें । मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on October 8, 2017 at 7:17am
आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब बेहतरीन लघुकथा पर बधाई स्वीकारें।
यह लघुकथा को जैसे ही पढ़ना शुरू किया लगभग सब कुछ समझ मे आ गया, इसमें अनकहा कुछ नहीं रहा, और अंत तक कुछ ख़ास नहीं मिला, जबकि आपकी ही पूर्व में कहीं गयी लघुकथाएं अंत तक बाँधे रहती है। शेष आप खुद देखियेगा। सादर
Comment by Samar kabeer on October 7, 2017 at 11:09pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
शीर्षक के मुआमले में आप गम्भीर नहीं होते,अक्सर आपकी लघुकथाओं के शीर्षक आलेख की तरह होते हैं,आज कल ये आम चलन हो गया है कि ग़ज़ल संग्रह के नाम नॉवेल की तरह होते हैं,जबकि जहाँ तक मेरा ख़याल है किसी भी रचना का शीर्षक उसकी विधा के हिसाब से होना बहुत ज़रूरी बिंदू है ।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 7, 2017 at 9:42am
जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी,
ख़ूबसूरत लघुकथा के लिए मुबारक़बाद,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service