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ग़ज़ल नूर की-तन्हाइयों के गहरे जंगल में रात काटी

२२१२, १२२; २२१२, १२२ (अरकान का क्रम भिन्न भी हो सकता है)
.
तन्हाइयों के गहरे जंगल में रात काटी
तृष्णाओं से भरे इक मरुथल में रात काटी.
.
जब रौशनी बढ़ा कर चन्दा ने उस को छेड़ा
शरमा के चाँदनी ने बादल में रात काटी. 
. `    
चुगली न कर दे बैरन थी जान कश्मकश में
बाहों में थे पिया और पायल में रात काटी.
.
साजन का नाम जपते अधरों का थरथराना,     
बिरहन के मुख पे फैले काजल में रात काटी.
.
हर कूक ने उठाई है हूक मेरे दिल में
अमुआ पे चीखती इक कोयल में रात काटी.
.
माज़ी की ख़ाक में मैं हर शब् मिला के आँसू
हर सुब्ह सोचता हूँ दलदल में रात काटी.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 931

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 6, 2017 at 8:08am

शुक्रिया आ. समर कबीर सर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 6, 2017 at 8:07am

शुक्रिया आ. अफरोज़ साहब 

Comment by राज़ नवादवी on October 5, 2017 at 7:12pm

जनाब निलेश जी, सुन्दर रचना प्रस्तुत के लिए साधुवाद. मफ़हूम के लिहाज़ यह शेर बहुत अच्छा लगा मुझे:

माज़ी की ख़ाक में मैं हर शब् मिला के आँसू
हर सुब्ह सोचता हूँ दलदल में रात काटी.


बहुत खूब, वाह वाह, सादर 

Comment by Samar kabeer on October 5, 2017 at 5:45pm
जनाब प्रधान सम्पादक महोदय आदाब,कुछ दिन से ये अजीब बात हो रही है कि ज़्यादातर रचनाएँ दो बार ब्लॉग पर आ रही हैं,यही हाल टिप्पणियों का भी है, कृपया संशय दूर करें,ऐसा क्यों हो रहा है ?
Comment by Samar kabeer on October 5, 2017 at 5:41pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,बढ़िया ग़ज़ल,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Afroz 'sahr' on October 5, 2017 at 5:33pm
आदरणीय निलेश जी बहुत सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत मुबारकबाद आपको सादर,,,,
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 5, 2017 at 4:50pm

शुक्रिया आ. दिनेश भाई ...
बहर / अरकान का मुझे कोई ज्ञान नहीं है...
मैंस धुन में गुनगुनाता हूँ ..उस में मिसरा यूँ कटता   है ..

तन्हाइयों /के गहरे /// जंगल में रा/ त काटी
जब रौशनी /बढ़ा कर /// चन्दा ने उस// को छेड़ा ...
सादर 

Comment by दिनेश कुमार on October 5, 2017 at 3:53pm
उम्दा ग़ज़ल आ. निलेश सर। अच्छी रदीफ़। बेहतरीन अशआर हुए हैं। वाह वाह

Kya arkaan yun bhi hon sakte hain sir..
221 2122 // 221 2122
Comment by दिनेश कुमार on October 5, 2017 at 3:53pm
उम्दा ग़ज़ल आ. निलेश सर। अच्छी रदीफ़। बेहतरीन अशआर हुए हैं। वाह वाह

Kya arkaan yun bhi hon sakte hain sir..
221 2122 // 221 2122

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