For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की- सीने से चिमटा कर रोये,

२२, २२, २२, २२ 
.
सीने से चिमटा कर रोये,
ख़ुद को गले लगा कर रोये.
.
आईना जिस को दिखलाया,  
उस को रोता पा कर रोये.
.
इक बस्ते की चोर जेब में,
ख़त तेरा दफ़ना कर रोये.
.
इक मुद्दत से ज़ह’न है ख़ाली,
हर मुश्किल सुलझा कर रोये.

तेरी दुनिया, अजब खिलौना,
खो कर रोये, पा कर रोये. 
.
सीखे कब आदाब-ए-इबादत,
बस,,,, दामन फैला कर रोये.
.
हम असीर हैं अपनी अना के,
लेकिन मौका पा कर रोये.
.
सूरज जैसा “नूर” है लेकिन,
जुगनू एक उड़ा कर रोये.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1554

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on October 4, 2017 at 3:40pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
कुछ बारीक बातों की तरफ़ आपकी तवज्जो दिलाना चाहूँगा ।

'इक बस्ते की चोर जेब में'
ये मिसरा यूँ होना चाहिए:-
'बस्ते की इक चोर जेब में'
'सदियाँ होंठ दबाकर रोये'
'सदियों होंठ दबा कर रोये'
'सूरज जैसा 'नूर'है लेकिन'
सूरज में नूर नहीं होता,आग होती है,इस दृष्टि से इस मिसरे को देखियेगा ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 4, 2017 at 3:24pm

शुकिया आ अफरोज़ जी 

Comment by Afroz 'sahr' on October 4, 2017 at 12:13pm
आदरणीय निलेश जी शेर दर शेर दाद पेश करता हूँ कुबूल करने की ज़हमत गवारा करें।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 4, 2017 at 11:00am

शुक्रिया आ. दिनेश भाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 4, 2017 at 10:59am

शुक्रिया आ सलीम साहब 

Comment by दिनेश कुमार on October 4, 2017 at 8:21am
सीखे कब आदाब-ए-इबादत,
बस,,,, दामन फैला कर रोये

Bilkul sahi ... Aisa bhi hua hai bahut baar..
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई आ. निलेश सर जी। वाह
Comment by दिनेश कुमार on October 4, 2017 at 8:21am
सीखे कब आदाब-ए-इबादत,
बस,,,, दामन फैला कर रोये

Bilkul sahi ... Aisa bhi hua hai bahut baar..
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई आ. निलेश सर जी। वाह
Comment by SALIM RAZA REWA on October 4, 2017 at 7:54am
जनाब नीलेश नूर साहिब,
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
17 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service