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पॉकिटमेन (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"जी नहीं, आर्मी की यूनीफोर्म जैसी नहीं, मेरी सुविधा के अनुसार ही कुछ जेबों वाली शर्ट और पैंट दिखाइये!" अपने कंधे उचकाते हुए स्मार्टमेन ने दुकानदार से कहा। तुरंत ही उसका स्मार्टसन डिमांड स्पष्ट करते हुए बोल पड़ा - "अंकल जी, अच्छे-खासे ब्रांड की ऐसी ड्रेस हो, जिसमें हमारे मोबाइल या टैबलेट वगैरह अच्छी तरह से समा जायें!"
दुकानदार आंखें फाड़कर उन दोनों और उनके पहनावे को घूरने लगा। फिर चार-पांच महंगी शर्ट्स दिखाते हुए बोला -"वैसे कितने मोबाइलों के लिए किस-किस पोजीशन पर जेबें चाहिए आपको?"
"दिल वाली साइड में और प्राइवेट पार्ट्स वाली साइड्स में नहीं होनी चाहिए, इंटरनेट से पता चला है कि वहां कोई नुकसान हो सकता है!"
"सीने में दायीं तरफ़ हो, या सीने के नीचे हो!" पिता की बात स्पष्ट करते हुए स्मार्टसन ने कहा।
"यदि पीठ की तरफ ऐसी मल्टीपॉकिट्स हों जिनमें लेपटॉप जैसा सब कुछ आ सके, तो बेहतर!" स्मार्टमेन की इस बात पर उसके बेटे ने धीरे से कोहनी मारकर चुप रहने का इशारा किया।
"फिर तो आपको किसी स्पेशलिस्ट टेलर के पास जाना चाहिए! वैसे भाईसाहब आप करते क्या हैं?" दुकानदार ने दिखाई गई शर्ट्स समेटते हुए कहा।
"हे, हे, हे...मल्टीनेशनल मल्टीटास्किंग करते हैं हम रोज़ाना! वैसे आपको उस से क्या मतलब?"
"क्या मतलब!"
"हम तो डिजीटाइजेशन के युग के सोशल मीडिया वाले डिजीटल सिटीजन हैं; बैग, बैगिज़ से बचना चाहते हैं!" इतना कहकर स्मार्टमेन अपने बेटे से बोला- "चलो यार, किसी स्मार्ट टेलर के यहां चलते हैं!" लेकिन स्मार्टसन दुकानदार से मुख़ातिब होकर बोला - "अंकल जी, आपके पास ऐसे मौज़े तो होंगे न, जिनमें पिंडलियों की जगह पॉकिट्स हों मोबाइल या चार्जर या नर्स वग़ैरह रखने के लिए!"
दुकानदार ने माथा पीटते हुए कहा- "नर्स या पर्स!"
"पर्स के ज़माने तो गये! एटीएम, डेबिट-क्रेडिट कॉर्ड वग़ैरह नर्स हैं हमारे, ज़रा समझा करो!" स्मार्टमेन ने स्पष्टीकरण दिया।
"चलो पापा यहां से, लगता है कि यहां पुराना स्टॉक है!" स्मार्टसन ने दुकान के शो-केस वग़ैरह पर नज़र दौड़ाते हुए पिता जी को लगभग घसीटते हुए कहा।
तभी दुकानदार ने कहा- "भैय्या, उन सबका अभी नया वर्ज़न लॉन्च नहीं हुआ है!"
यह सुनकर उसके साथी ने हंसते हुए कहा- "अब सब कस्टमर केयर वालों को फीडबैक भेजना ही पड़ेगा! फैशन अपडेटेड, अपग्रेडेड होने पर आइयेगा!"
बाप-बेटे दोनों टेढ़ा सा मुंह बनाकर दुकान से बाहर जाने लगे। दुकानदार ने अपने साथी से कहा - "बीमारियों को जेबों में रखकर चलेंगे पॉकिटमेन !"
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2017 at 4:23pm
रचना पर समय देकर अनुमोदन व हौसला अफज़ाई के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2017 at 10:55am

आज की आधुनिक सभ्यता और आधुनिक सोच ..समय के अनुसार डिमांड भी अप्डेटीड होती रहती हैं वास्तविकता के दायरे में बहुत बढिया कटाक्ष करती हुई लघु कथा .बहुत बहुत बधाई आद० उस्मानी जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 4, 2017 at 12:58am
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर वक़्त देकर अनुमोदन व हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब और जनाब सलीम रज़ा रेवा साहब।
Comment by Mohammed Arif on October 3, 2017 at 11:39pm
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी आदाब, बहुत ही कटाक्षपूर्ण और आज के फैशनेबल दौर की लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 3, 2017 at 5:22pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर मुबारक़बाद ।
Comment by Samar kabeer on October 3, 2017 at 3:11pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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