For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"मैडम, इस तरह कैसे चलेगा, बिना छुट्टी लिए आप गायब हो जाती हैं| यह ऑफिस है, ध्यान रखिये, पहले भी आप ऐसा कर चुकी हैं", जैसे ही वह ऑफिस में घुसी, बॉस ने बुलाकर उसे झाड़ दिया| उसने एक बार नजर उठाकर बॉस को देखा, उसकी निगाहों में गुस्सा कम, व्यंग्य ज्यादा नजर आ रहा था| बगल में बैठी बॉस की सेक्रेटरी को देखकर उसको उबकाई सी आ गयी|
लगभग तीन महीने हो रहे थे उसको इस ऑफिस में, पूरी मेहनत से और बिना किसी से लल्लो चप्पो किये वह अपना काम करती थी| ऑफिस में कुछ महिलाएं भी थीं जिनके साथ वह रोज लंच करती थी लेकिन उनके सोच के स्तर को देखकर उसने उनसे ज्यादा बात करना लगभग छोड़ दिया था| इसी बात को लेकर कुछ महिलाओं ने उसे नीचा दिखाने का सोच लिया था और कई बार उनकी बातों का वह मुंहतोड़ जवाब दे चुकी थी और इनको नज़रअंदाज करना भी उसने सीख लिया था|
पिछले कई सालों से उसे कम से कम महीने में एक दिन बिस्तर पकड़ना ही पड़ता था| इतना भयानक दर्द होता था कि काम करना तो दूर, वह ठीक से चल फिर भी नहीं पाती थी| दवा से बस इतना होता कि आराम से लेट लेती थी लेकिन घर से निकलना तो सोच भी नहीं सकती थी| अगले दिन भी दिक्कत बहुत होती थी लेकिन किसी तरह दिन बीत जाता था| पिछले महीने ही उसने बॉस की सेक्रेटरी और साथ की महिलाओं को बता दिया था कि उस एक दिन वह किसी भी हालत में काम पर आने लायक नहीं रहती|
उसने एक बार सोचा कि बात ख़त्म की जाए और वह मुड़कर जाने को हुई| लेकिन तभी बॉस और सेक्रेटरी की हंसी ने उसके मन में आग लगा दी| पलटकर उसने बॉस की आँखों में ऑंखें डालते हुए कहा " शायद आपको इसके बारे में पता हो यही सोचकर तो मैंने आपकी सेक्रेटरी को अपने तकलीफ के बारे में बता दिया था| मैंने सोचा था कि वह आपको बता देगी और आप समझ जाएंगे| खैर आपकी पत्नी तो शायद इस दर्द के बारे में आपसे बात नहीं करती होगी लेकिन मैं अब आपको हर महीने बता दिया करुँगी और उस एक दिन नहीं आ पाऊँगी"|
वह बॉस के केबिन से बाहर निकल गयी और पीछे बंद हुए दरवाजे की आवाज पूरे ऑफिस को सुनाई पड़ रही थी|
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 694

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on October 9, 2017 at 10:20am

बहुत बहुत आभार आ शशि बंसल जी  

Comment by विनय कुमार on October 9, 2017 at 10:19am

बहुत बहुत आभार आ शेख शहजाद जी इस उत्साहवर्धक टिपण्णी के लिए 

Comment by shashi bansal goyal on October 7, 2017 at 3:35pm
बहुत बढ़िया ...
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 7, 2017 at 3:32pm
बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर सार्थक तीखा लेखन हुआ है। आपकी ऐसी रचनाओं से हमें मार्गदर्शन मिलता है। तहे दिल से बहुत-बहुत बधाई आदरणीय विनय कुमार जी। कभी कभी दर्द का अहसास कराने की मौलिक नवीनतम विधियां यूं कारगर सिद्ध हो जाती हैं। साहब की पत्नी के दर्द और उनकी चुप्पी की बात कहलवाकर रचना का तीखापन दूना हो गया और उद्देश्य पूर्ण हुआ।
Comment by विनय कुमार on October 7, 2017 at 10:12am

बहुत बहुत शुक्रिया आ महेंद्र कुमार जी, दरअसल व्यंग्य लिखने में अक्सर गलती कर जाता हूँ, धन्यवाद ध्यान दिलाने के लिए| इन वाक्यों को भी देखता हूँ कुछ संक्षेप में कर सकूँ तो, इसीप्रकार अपनी टिपण्णी से उत्साहवर्धन करते रहिये 

Comment by Mahendra Kumar on October 6, 2017 at 8:55pm

आ. विनय जी, अच्छी लघुकथा है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.

1. व्यंग = व्यंग्य

2. ये वाक्य थोड़े बड़े हैं, देख लीजिएगा :

(क) ऑफिस में कुछ महिलाएं भी थीं जिनके साथ वह रोज लंच करती थी लेकिन उनके सोच के स्तर को देखकर उसने उनसे ज्यादा बात करना लगभग छोड़ दिया था| 

(ख) इसी बात को लेकर कुछ महिलाओं ने उसे नीचा दिखाने का सोच लिया था और कई बार उनकी बातों का वह मुंहतोड़ जवाब दे चुकी थी और इनको नज़रअंदाज करना भी उसने सीख लिया था|"

सादर.

Comment by विनय कुमार on October 6, 2017 at 11:09am

बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी 

Comment by विनय कुमार on October 6, 2017 at 11:08am

बहुत बहुत आभार आ मोहतरम तस्दीक़ अहमद खान साहब

Comment by विनय कुमार on October 6, 2017 at 11:08am

बहुत बहुत आभार आ मोहतरम समर कबीर साहब 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 28, 2017 at 6:10pm
जनाब विनय कुमार साहिब ,अच्छी लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए।…"
3 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
5 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा जी, बहुत धन्यवाद। "
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आप का बहुत धन्यवाद।  "दोज़ख़" वाली टिप्पणी से सहमत हूँ। यूँ सुधार…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"//दोज़ख़ पुल्लिंग शब्द है//... जी नहीं, 'दोज़ख़' (मुअन्नस) स्त्रीलिंग है।  //जिन्न…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी, बहतर है।"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। आशा है कि…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की  टिप्पणी क़ाबिले ग़ौर…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी नमस्कार बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये हेर शेर क़ाबिले तारीफ़ हुआ है, फिर भी…"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service