For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अरमान और बिदाई (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"लगता है कि रास्ता भूल गई है।"

"काफ़ी देर से बैठी है, कोई मानसिक रोगी है या पागल है!"

"नहीं भाई, कपड़े तो साफ़ सुथरे हैं, शायद किसी से बिछड़ गई है!"

एक पेड़ के नीचे बैठी वह औरत लोगों की टिप्पणियां सुन तो रही थी लेकिन कहीं खोई हुई थी। उसके कानों में अभी भी बैंड-बाज़ों की आवाज़ें सुनाई दे रहीं थीं। फूल-मालाओं से लदे जीप में बैठे अपने पति के अपने प्रति रवैए से वह बहुत आहत थी। अत्यल्प-शिक्षित थी। बरसों से अपने बेटे-बहू के साथ ही 'किसी तरह' रह रही थी। पति द्वारा लाख मना किये जाने पर भी पति के रिटायरमेंट के कार्यक्रम और भव्य जुलूस में शामिल होने के लिए उसकी ज़िद पर ही उसका बेटा उसे यहां छोड़ गया था, उसके अरमान पूरे करने के लिए। दफ़्तर में भव्य विदाई कार्यक्रम में पति के बगल में बैठ कर वह भी गौरवान्वित महसूस कर रही थी शाल व श्रीफल लिए फूल-मालाओं से लदे हुए। उसके बाद कस्बे में निकले जुलूस में भी वह खुली जीप में पति के बगल में बैठी कुछ ही दूर तक संग जा पाई थी कि पति ने एक अॉटो-रिक्शा चालक को अपने क्वार्टर का पता बताकर पत्नी को 'अकेले ही' वहां से रवाना कर दिया और जुलूस एक 'बड़ी सी होटल' की ओर चला गया। अॉटो-रिक्शा चालक ने उसे उस चौराहे पर उतारा और अन्य अधिक सवारियां लेकर वहां से चला गया। पति से अपमानित सा महसूस कर वह औरत अब यूं भौचक्की सी उस पेड़ के नीचे बैठी हुई थी।

"अरे, यह तो वही औरत है, जो उस जुलूस में जीप में बैठी हुई थी!" एक आदमी ने उसे पहचान लिया था। नज़दीक जाकर उसने कहा- "उन साहब लोगों की तो होटल में पार्टी चल रही है, आप यहां कैसे?"

"पैसे नहीं हैं, न मोबाइल है! अॉटो-रिक्शा वाला यहां छोड़ गया, क्वार्टर का पता हमें नहीं मालूम!" रोते हुए उसने उस हमदर्द इंसान को बताया।

तभी भीड़ इकट्ठी हो गई। दरअसल वह क्वार्टर बहुत नज़दीक ही था किसी मोड़ पर। उस आदमी ने किसी तरह उसे उस क्वार्टर तक पहुंचाकर उसके पति को फोन करवाया। समाज में अपमानित सा महसूस कर पहले तो पति ने पत्नी को ख़ूब डांटा-फटकारा, फिर उस भले आदमी को सधन्यवाद विदा कर पत्नी की जमकर पिटाई की। वह अब मूर्छित अवस्था में थी। क्रोध कुछ शांत होने पर चपरासी और बाबुओं को बुलवाकर उसे डॉक्टर के पास भिजवा दिया यह कहकर कि "मेरे रिटायरमेंट की ख़ुशी शायद बर्दाश्त नहीं कर पा रही है!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

शेख़ शहज़ाद उस्मानी

[14 सितम्बर, 2017]

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 26, 2017 at 7:08pm
रचना पर समय देकर अनुमोदन व हौसला अफज़ाई और मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी, आदरणीय मोहित मिश्रा 'मुक्त' जी, आदरणीय शिज्जू शकूर साहब, आदरणीय समर कबीर साहब, आदरणीय पंकजोम " प्रेम " जी और आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब।
Comment by Mohammed Arif on September 19, 2017 at 9:37am
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, अच्छा कथानक, बेहतरीन कथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
Comment by Samar kabeer on September 17, 2017 at 11:18pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on September 17, 2017 at 4:33am
बहुत खूब उस्मानी साहब,आपने एकदम झकझोर दिया रचना के माध्यम से। क्या पुरूष प्रधान समाज है। शिक्षित समाज भी आज भी उसी तरह है, बहुत प्रश्न छोड़ती है यह लघुकथा। बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा पर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 16, 2017 at 6:02pm

हृदयस्पर्शी रचना हुई है मोहतरम जनाब उस्मानी साहब

Comment by पंकजोम " प्रेम " on September 15, 2017 at 2:41pm
ह्र्दयस्पर्शी रचना आदरणीय दिली मुबारकबाद आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service