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*221 2121 1221 212*

किस्मत ने उस के साथ करिश्मा नहीं किया ।
जिसने कभी वफ़ा से किनारा नहीं किया ।।

रहना पड़ा उसी के बज़्म में तमाम उम्र ।
जिसने हमारा साथ गवारा नहीं किया ।।

कितनी मिली जफ़ा है मुहब्बत के वास्ते ।
तुमने कभी हिसाब पे चर्चा नहीं किया ।।

कानून पास हो चुके मुद्दों के नाम पर ।
किसने कहा करों में इजाफा नहीं किया ।।

लुटती है आबरू जो सरेआम शह्र में ।
कहते हैं लोग हुस्न पे परदा नहीं किया ।।

शायद कोई ख़ता हुई जबसे नज़र मिली।
उसने इधर निगाह दुबारा नहीं किया ।।

इफ़्लास का हमारे जब उसको पता चला ।
तब से वो ऐतबार हमारा नहीं किया ।।

कुछ तो सहा है दर्द जरा मानिए हुजूर ।
शब भर दुआ के साथ गुजारा नहीं किया ।।

कितना बदल गया है यहां आम आदमी ।
इज्ज़त गई तो शोर शराबा नहीं किया ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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Comment by vijay nikore on July 7, 2017 at 12:17pm

अच्छी गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय नवीन जी।

Comment by Ravi Shukla on July 7, 2017 at 11:33am
आदरणीय नवीन जी ग़ज़ल के लिए मुबारक बाद कुबूल करें ।
दूसरे शेर में (उसी के बज़्म में ) बज़्म स्त्रीलिंग है तो उसी की होना चहिये। बाकी समर साहब ने कह दिया है । आखिरी शेर के लिए अलग से बधाई पेश है । सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2017 at 10:35pm
बहुत खूब हार्दिक बधाई ।
Comment by नाथ सोनांचली on July 5, 2017 at 5:54am
आद0 नवीन मनी जी सादर अभिवादन, उम्दा गजल पर दाद के साथ मुबारकबा पेश करता हूँ, सादर
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 3, 2017 at 6:47pm
आ0 आरिफ सर सादर नमन ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 3, 2017 at 6:46pm
आदरणीय कबीर सर सादर नमन । इतनी अच्छी इस्लाह मुझे कहीं और नही मिलती । आपकी इस कृपा पर मैं बहुत खुश हूँ । ऐसे ही कृपा बनाये रखिये । सादर नमन ।
Comment by Samar kabeer on July 3, 2017 at 2:46pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
दूसरे शैर के ऊला मिसरे की बह्र चेक कीजिये ।
'कहते हैं लोग हुस्न पे परदा नहीं किया'
इस मिसरे में 'पे'की जगह 'ने'होना चाहिए ।

'उसने इधर निगाह दुबारा नहीं किया'
इस मिसरे में 'निगाह'शब्द स्त्रीलिंग है, इस लिये इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-
"उसने जो रुख़ इधर का दुबारा नहीं किया"

'तब से वो एतिबार हमारा नहीं किया'
इस मिसरे को वर्तनी के हिसाब से यूँ होना चाहिये:-
"फिर उसने एतिबार हमारा नहीं किया"
आठवें शैर का मफ़हूम साफ नहीं है ।
Comment by Mohammed Arif on July 3, 2017 at 7:51am
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, लाजवाब ग़ज़ल । हर शे'र तराशा हुआ । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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