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ग़ज़ल नूर की -बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 

बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना
बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.
.
छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.
.
देखने से गो नहीं मक़्सूद जिस बेचैनी का
हर कोई कहता है फिर भी उस को “रस्ता देखना”  
.
क़ामयाबी दे अगर तो ये भी मुझ को दे शुऊ’र 
किस तरह दिल-आइने में अक्स ख़ुद का देखना.
.
चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं   
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना.
.
तीरगी फिर कर रही है घेरने की कोशिशें,
“नूर” है तेरा इसे तू ही ख़ुदाया देखना.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by Hemant kumar on May 5, 2017 at 3:37pm
आदरणीय शेवगाँवकर सर इस उम्दा ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाईंयाँ स्वीकार करें..

बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना
बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.

इस मत्ला के लिए खास तौर पर बधाई स्वीकारें !
वाह्-वाह् क्या कहने...शेर भी कमाल के हुए है।
Comment by Samar kabeer on May 5, 2017 at 3:14pm
जनाब निलेश 'नूर'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
जनाब मनन भाई मक़्ते में ऐब-ए-तनाफ़ुर की तरफ़ इशारा 'कर रहे हैं' ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 2:44pm

शुक्रिया आ. मनन जी ....
हाँ ..शायद दोष है लेकिन क्या कर रहे हो? अभी काम कर रहा हूँ .... आदि इतना अधिक बोला जाने वाला जुमला है कि ये दोनों र साथ आने से भी अटकाव नहीं लगता ..
सादर 

Comment by Manan Kumar singh on May 5, 2017 at 1:34pm
र के बाद र की मूल रूप में हीं पुनरावृति हो रही है न, आदरणीय। शायद इसे दोष में शुमार किया जाता है।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 9:59am

शुक्रिया आ. मनन जी ....
आप   की शंका को समझ नहीं पाया मैं..स्पष्ट करने की कृपा  करें 
सादर 

Comment by Manan Kumar singh on May 5, 2017 at 9:47am
अच्छी गजल है आ द र णी य,ब धा ई!पर तिरगी ...कर रही है,' देख लें,सादर।

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