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गजल के पाँव दाबे हैं तभी कुछ सीख पाये हैं ...तंज-ओ-मज़ाह

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२ 
.
हमारा साग बांसी है तुम्हारी भाजी ताजी है
जो इस में ऐब ढूँढेगा तो वो आतंकवादी है.
.
गजल के पाँव दाबे हैं तभी कुछ सीख पाये हैं 
इसे पाखण्ड कहना आप की जर्रानवाजी है.
.
तलफ्फुज को लगाओ आग, है ये कौन सी चिड़िया
हमारा राग अपना है हमारी अपनी ढपली है.
.
बहर पर क्यूँ कहर ढायें लिखे वो ही जो मन भाये
मगर इतना समझ लें, ये अदब से बेईमानी है.
.
शहर भर का जहर पीने के आदी हो चुके हैं हम
समझ लीजै यही हम जैसों की एरिस्टोक्रेसी है.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 16, 2017 at 8:40pm

शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ जी.....
ग़ज़ल   तंज़  के रूप    में है ... अधिक कुछ न देखें इसमें 
आभार 

Comment by नाथ सोनांचली on April 16, 2017 at 11:24am
आद0 भाई नीलेश जी सादर अभिवादन, बहुत मस्त गजल, वाह, वाह। मतला से ही पूरी रवानगी भरी, क्या कहना,नमन आपको। बधाई निवेदित है।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 15, 2017 at 10:54pm
गजल के पाँव दाबे हैं तभी कुछ सीख पाये हैं...मगर इतना समझ लें, ये अदब से बेईमानी है.
हमारे लिए तो सार्थक ही है..
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 14, 2017 at 4:58pm

शुक्रिया भाई... 
मज़ाक है .. सार्थकता न खोजे इस में ..
आभार 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 14, 2017 at 4:52pm
बहुत खूबसूरत सार्थक ग़ज़ल कही आदरणीय..बेहतरीन.. सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 13, 2017 at 8:12pm

शुक्रिया आ. दिनेश भाई 
आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 13, 2017 at 8:12pm

शुक्रिया आ. राजेश दीदी ....
मुझे लगा कि बात ग़ज़ल ही करे तो बेहतर हो 
आभार 

Comment by दिनेश कुमार on April 13, 2017 at 8:01pm
तलफ्फुज को लगाओ आग, है ये कौन सी चिड़िया
हमारा राग अपना है हमारी अपनी ढपली है....
आपका जवाब नहीं आ नीलेश सर। वाह वाह। बेहतरीन अशआर।
Comment by दिनेश कुमार on April 13, 2017 at 8:00pm
तलफ्फुज को लगाओ आग, है ये कौन सी चिड़िया
हमारा राग अपना है हमारी अपनी ढपली है....
आपका जवाब नहीं आ नीलेश सर। वाह वाह। बेहतरीन अशआर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2017 at 7:24pm

तलफ्फुज को लगाओ आग, है ये कौन सी चिड़िया
हमारा राग अपना है हमारी अपनी ढपली है.-----वाह्ह्ह्ह हाहाहा ---सही कहा 

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है कमान से अच्छे तीर निकले हैं भैया 

दिल से दाद प्रेषित है |
.

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