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घटते क़द (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

बच्चों के दोनों तरफ क़िताबों के ढेर लगे हुए थे। नन्हें बच्चे अपनी गोदियों में बड़ी सी क़िताबें लिए विश्व-स्तरीय मशहूर तस्वीरों को निहार रहे थे।

क़िताबों के एक ढेर ने दूसरे से कहा- "किसका क़द ऊँचा? मेरा, तेरा या हमसे इन बच्चों का?"

जवाब मिला- "न तेरा, न मेरा और न ही इन बच्चों का! क़द तो ऊँचा है इन्टरनेट का, जो हम में समाया हुआ है, हम सब पर भारी है, जिसके प्रति शिक्षा जगत आभारी है!"

यह सुनकर पहले ढेर ने कहा- "तो शिक्षा जगत का ही क़द ऊँचा हुआ या शिक्षा-नीतियों का? माता-पिता का क़द ऊँचा हुआ या व्यापार जगत का? अंग्रेज़ियत का या इन्सानियत का?"

"बात बड़ी गंभीर है? ग़रीब, ग़रीब और अमीर, अमीर ही है!" यह कहकर क़िताबों के दूसरे ढेर ने बच्चों की तरफ इशारा करते हुए कहा- "हमारी विषय-वस्तु और ढेर का क़द भले ही ऊँचा रहे, इन्टरनेट के दौर में इन मिट्ठुओं की तहज़ीब और इनकी परवरिश करने वालों के ज़मीर का क़द तो घट ही रहा है न!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 17, 2017 at 10:14pm
मेरी इस पोस्ट पर समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय नीता कसार जी, आ. लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी, आ. तेजवीर सिंह जी, आ. महेन्द्र कुमार जी, व आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 16, 2017 at 12:14pm

 एक नई सोच के साथ रचित लघु कथा अच्छी लगी साहब  शेख शहजाद उस्मानी जी | बधाई स्वीकारे 

Comment by Mahendra Kumar on March 14, 2017 at 9:47am
बढ़िया लघुकथा है शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by TEJ VEER SINGH on March 13, 2017 at 6:41pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।सुन्दर प्रस्तुति।

Comment by Nita Kasar on March 13, 2017 at 3:59pm
शिक्षा के घटते स्तर व इंटरनेट के बढते दख़लंदाज़ी पर कटु व्यंग्य करती कथा के लिये बधाई आद०शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
Comment by Mohammed Arif on March 12, 2017 at 7:30am
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, बहुत अच्छा कटाक्ष कियया है आपने । अद्भुत विषय चयन । आपके चिंतन की दाद देना होगी । बधाई क़ुबूल करें ।

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