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शंका और विश्वास के दोराहे पर 

मन में पीली धुंधली उदास गहरी

बेमाप वेदना यथार्थों की लिए

स्वीकार कर लेता हूँ सभी झूठ 

कि जाने कब कहाँ किस झूठ में भी

किसी की विवशता दिख जाए, या

मिल जाए उसकी सच्चाई का संकेत

कि जानता हूँ मैं, यह ठंडी पुरवाई

यह फैली हुई धूप नदी-झील-तालाब

सब कहते हैं  ...

वह कभी झूठी नहीं थी

ऊँची उठती है कोई उभरती कराह

स्वपनों के अनदेखे विस्तार में

विद्रोह करते हैं मेरे अन्त:स्वर

बुलबुलों-से फूट जाते हैं मेरे संक्ल्प

और लौट आता हूँ मैं उसी द्वार पर

झंकृत हुए थे जहाँ मेरी सूनी सितार के तार

और फिर कुछ हुआ, बहुत बुरा हुआ

वह तार नियति ने निर्दयता से कस दिए इतने

कि तकलीफ़ भरी छाती में है अभी तक

कोई गड्ढा गहरा ...

चारों तरफ़ बेचैनी !

झूठ ? कैसा झूठ ? ... दोष मेरा ही होगा 

 ------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 784

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Comment by vijay nikore on April 7, 2017 at 10:03am

रचना की उत्तम सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी। 

Comment by vijay nikore on April 7, 2017 at 10:03am

रचना की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय भाई गिरिराज जी।

Comment by vijay nikore on April 7, 2017 at 10:02am

रचना की सराहना से आपने मेरा मनोबल बढ़ाया। इसके लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय महेन्द्र जी।

Comment by Sushil Sarna on March 16, 2017 at 2:31pm

वह तार नियति ने निर्दयता से कस दिए इतने
कि तकलीफ़ भरी छाती में है अभी तक
कोई गड्ढा गहरा ...
चारों तरफ़ बेचैनी !
झूठ ? कैसा झूठ ? ... दोष मेरा ही होगा
वाह अंतर्द्वंद की अप्रतिम प्रस्तुति सर .... हमेशा की तरह दिल को छूती इस दिलकश प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर. .

Comment by vijay nikore on March 14, 2017 at 3:12pm

रचना की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।

Comment by vijay nikore on March 14, 2017 at 3:09pm

रचना की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी।

Comment by vijay nikore on March 12, 2017 at 3:20pm

रचना पर आपसे इतना मान मिलना म्रेरे लिए पारितोषक है। आपका हार्दिक आभार, आदरणीय समर भाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 9, 2017 at 11:37am

आदरनीय बड़े भाई विजय जी , सच्चा प्यार विवश ही होता है शयद , और इसीलिये कभी इससे इतर सोच ही नही पाता है । आपकी कविता मुझे एक विवश प्रेम की आत्मकथा लगी । बहुत खूब ... हार्दिक बधाइयाँ

Comment by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 9:34pm
हमेशा की तरह एक और बढ़िया कविता। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय विजय जी। सादर।
Comment by Mohammed Arif on March 8, 2017 at 4:34pm
आदरणीय विजय निकोरे जी आदाब, बहुत बेबाकी से आच्छादित कविता की प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें ।

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