For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शंका और विश्वास के दोराहे पर 

मन में पीली धुंधली उदास गहरी

बेमाप वेदना यथार्थों की लिए

स्वीकार कर लेता हूँ सभी झूठ 

कि जाने कब कहाँ किस झूठ में भी

किसी की विवशता दिख जाए, या

मिल जाए उसकी सच्चाई का संकेत

कि जानता हूँ मैं, यह ठंडी पुरवाई

यह फैली हुई धूप नदी-झील-तालाब

सब कहते हैं  ...

वह कभी झूठी नहीं थी

ऊँची उठती है कोई उभरती कराह

स्वपनों के अनदेखे विस्तार में

विद्रोह करते हैं मेरे अन्त:स्वर

बुलबुलों-से फूट जाते हैं मेरे संक्ल्प

और लौट आता हूँ मैं उसी द्वार पर

झंकृत हुए थे जहाँ मेरी सूनी सितार के तार

और फिर कुछ हुआ, बहुत बुरा हुआ

वह तार नियति ने निर्दयता से कस दिए इतने

कि तकलीफ़ भरी छाती में है अभी तक

कोई गड्ढा गहरा ...

चारों तरफ़ बेचैनी !

झूठ ? कैसा झूठ ? ... दोष मेरा ही होगा 

 ------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 784

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on April 7, 2017 at 10:03am

रचना की उत्तम सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी। 

Comment by vijay nikore on April 7, 2017 at 10:03am

रचना की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय भाई गिरिराज जी।

Comment by vijay nikore on April 7, 2017 at 10:02am

रचना की सराहना से आपने मेरा मनोबल बढ़ाया। इसके लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय महेन्द्र जी।

Comment by Sushil Sarna on March 16, 2017 at 2:31pm

वह तार नियति ने निर्दयता से कस दिए इतने
कि तकलीफ़ भरी छाती में है अभी तक
कोई गड्ढा गहरा ...
चारों तरफ़ बेचैनी !
झूठ ? कैसा झूठ ? ... दोष मेरा ही होगा
वाह अंतर्द्वंद की अप्रतिम प्रस्तुति सर .... हमेशा की तरह दिल को छूती इस दिलकश प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर. .

Comment by vijay nikore on March 14, 2017 at 3:12pm

रचना की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।

Comment by vijay nikore on March 14, 2017 at 3:09pm

रचना की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी।

Comment by vijay nikore on March 12, 2017 at 3:20pm

रचना पर आपसे इतना मान मिलना म्रेरे लिए पारितोषक है। आपका हार्दिक आभार, आदरणीय समर भाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 9, 2017 at 11:37am

आदरनीय बड़े भाई विजय जी , सच्चा प्यार विवश ही होता है शयद , और इसीलिये कभी इससे इतर सोच ही नही पाता है । आपकी कविता मुझे एक विवश प्रेम की आत्मकथा लगी । बहुत खूब ... हार्दिक बधाइयाँ

Comment by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 9:34pm
हमेशा की तरह एक और बढ़िया कविता। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय विजय जी। सादर।
Comment by Mohammed Arif on March 8, 2017 at 4:34pm
आदरणीय विजय निकोरे जी आदाब, बहुत बेबाकी से आच्छादित कविता की प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
Tuesday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
Tuesday
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service