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११२  ११२  ११२  ११२  ११२  ११२  ११२  ११२

भँवरे कलियाँ तरु  झूम उठें जब फाग बयार करे बतियाँ|

दिन रैन कहाँ फिर चैन पड़े कतरा- कतरा कटती रतियाँ|

कविता, वनिता, सविता, सरिता ढक के मुखड़ा छुपती फिरती|

जब रंग अबीर लिए कर में निकले किसना धड़के छतियाँ|

 

नव लाल गुलाल मले मितवा हँसती सखियाँ हँसती नगरी|

कजरा लहका गज़रा महका  मुख लाल हुआ पिघली सगरी|   

तन काँप उठा धड़का जियरा चुप देह रही चुप होंठ हिले|    

पर बोल पड़ी अँखियाँ पगली छलकी झट प्रीत भरी गगरी|

मौलिक एवं अप्रकाशित  

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 9, 2017 at 1:03pm

आद० मोहम्मद आरिफ़ जी ,आपको ये सवैया छंद मुक्तक पसंद आये दिल से आभार आपका .

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on March 9, 2017 at 10:12am
आदरणीया राजेश कुमारी जी फाग की सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। सादर।
Comment by Ram Ashery on March 9, 2017 at 8:29am

फाग से सरोबोर रचना के लिए आपको बधाई स्वीकार हो 

Comment by vijay nikore on March 8, 2017 at 11:02pm

मनमोहक रचना के लिए बधाई, आदरणीया राजेश जी

Comment by Satyanarayan Singh on March 8, 2017 at 10:54pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सादर बधाई प्रेषित है 

    

Comment by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 8:55pm
आदरणीया राजेश मैम बहुत अच्छी लगी आपकी प्रस्तुति। ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 8, 2017 at 7:02pm

आदरनीया राजेश जी , बहुत सुन्दर सवैया की रचना हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by रामबली गुप्ता on March 8, 2017 at 6:57am
आदरणीया बहन राजेश कुमारी जी सवैयों पर प्रयास अच्छा हुआ है। दिल से बधाई लीजिये। बताना चाहूँगा कि सवैये के चारों पदों में तुकांतता का निर्वहन होता है जबकि आपने दोनों सवैयों के तीसरे पद में तुकांतता नही रखी है। ये दुर्मिल मुक्तक हो सकता है सवैया नही। इसी प्रकार दूसरे सवैये में 'सगरी' शब्द का क्या आशय लिया है आपने? या फिर कोई आंचलिक शब्द है? उदाहरण स्वरूप दुर्मिल का एक प्रयास देखिए-
प्रिय से रँगवावन को चुनरी,मन मोद लिए मुसकाय चली।
सब छोड़ जहाँ के लाज सखे! भर थाल गुलाल उड़ाय चली।
पट पीत व लाल हरा रँग से, मन को रँग प्रेम रँगाय चली।
नव यौवन के मद से सबके, मन में मदिरा छलकाय चली।।
Comment by नाथ सोनांचली on March 7, 2017 at 3:29pm
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत दुर्मिल सवैया, क्या कने, मन खुस हो गया। बधाई आपको सादर।
Comment by Mohammed Arif on March 6, 2017 at 6:50pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी आदाब,फाग बयार से सराबोर आपके दुर्मिल सवैया ने मुझे बहुत प्रभावित किया । होली की रंगों भरी शुभकामनाएँ ।

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