For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कृपा करो जगदीश हे! करो जगत कल्याण।
प्रेम दया सद्भाव दो, हो शुभ तन-मन-प्राण।।1।।

हो कण-कण में व्याप्त तुम, हे! जग पालनहार।
पद-पावन में तीर्थ सब, है सुरसरि की धार।।2।।

सदा तुम्हारी भक्ति में, रहूँ समर्पित नाथ!
ऐसा दो वरदान अब, रखो शीश पर हाथ।।3।।

प्रभो! सकल ब्रह्माण्ड के, एक तुम्ही हो नाथ।
सदा कामना है यही, रहे कृपा-कर माथ।।4।।

सूर्य-चंद्र-तारक सभी, जीव-जन्तु इत्यादि।
सबका तुम से अंत हरि! है तुमसे ही आदि।।5।।

चतुर्वेद-वेदांग औ' सभी धर्म-ग्रंथादि।
पार न हरि का पा सके, जान न पाये आदि।।6।।

हे हरि! उर पावन करो, दो नित निर्मल ज्ञान।
सदा जगत हित हेतु ही, निकलें मेरे प्रान।।7।।

जो मानवता हेतु है सदा समर्पित आज।
सच्चा ईश्वर भक्त वह यही भक्ति का राज।।8।।

जिनके मन में हो भरा, दया-प्रेम-सद्भाव।
पार उतारें हरि सदा, उनकी डगमग नाव।।9।।

कर दो ज्योतिर्मय हृदय, हरि! हर लो अज्ञान।
धन-जन-बल-सौंदर्य का, कभी न हो अभिमान।।10।।

इस नश्वर संसार में, शाश्वत है नर-धर्म।
मनुज भले मिटता यहाँ, मिटे न उसका कर्म।।11।।

निज सद्कर्मों से यहाँ कर लो जीवन धन्य।
रखो नये प्रतिमान यूँ, चलें उन्हीं पर अन्य।।12।।

असत-अधर्म-अनीति से, जो नित साधें स्वार्थ।
अंत हेतु उनके सदा, जन्में श्री-हरि-पार्थ।।13।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1148

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 13, 2017 at 8:19pm

भाई रामबली जी, आपको मालूम है क्या करना है. अभ्यासरत हों. 

छंदों को लेकर आप जैसे समर्थ रचनाकार स्पष्ट नहीं होंगे तो पाठक को इनसे सम्बन्धित भ्रामक जानकारी ही मिलेगी. आज के पाठकों को कैसी छांदसिक रचनाएँ देखने-पढ़ने को मिल रही हैं, यह इस प्रस्तुति पर कतिपय पाठकों की टिप्पणियों से ज्ञात हो रहा है. ऐसे में छान्दसिक रचनाकारों का दायित्व और बढ़ जाता है. आशा है, आप अन्यथा विभ्रमों से परे तार्किकता के साथ रचनाकर्म को उद्यत होंगे. आदरणीय मिथिलेश जी ने जैसी स्पष्टता के साथ तथ्यों को समक्ष किया है वह हर तरह से अनुकरणीय है.

शुभेच्छाएँ

 

Comment by नाथ सोनांचली on February 13, 2017 at 11:52am
आद0 भाई रामबली जी सादर अभिवादन। बढ़िया दोहावली में स्तुति गान पढ़कर मन आह्लादित हुआ, आपको इस उम्दा सृजन के लिए बधाई निवेदित करता हूँ। एक बात और आज मिथिलेश वामनकर जी से विशेष जानकारी मिली कि छंद का विषय व्यापक बनाया जा सकता है, क्योकि तमाम छंद को लेकर मेरे मन में भी पूर्वाग्रह था। और दूसरी बात उर्दू शब्दो को लेकर भी काफी स्पष्टता हो गयी। इस उत्तम चर्चा के लिए भाई मिथिलेश वामनकर जी को कोटि कोटि बधाई।
Comment by रामबली गुप्ता on February 13, 2017 at 11:25am
सादर आभार आदरणीय सौरभ सर
कृपा करके अन्य दोहों के सन्दर्भ में यदि कोई संशोधन हो तो सुझावें।सादर
Comment by रामबली गुप्ता on February 13, 2017 at 11:06am
सादर आभार आदरणीया राजेश दीदी
Comment by रामबली गुप्ता on February 13, 2017 at 11:05am
सादर आभार आदरणीया राजेश दीदी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 13, 2017 at 12:37am

पोस्ट पर अच्छी और सार्थक चर्चा हुई है. भला लगा. भाई मिथिलेश जी ने जिस तार्किकता से अपनी बात रखी है, वह अनुकरणीय है. विश्वास है, तथ्यपरकता के आग्रही आदरणीय के कहे का लाभ लेंगे. 

मैं तो शिल्प के स्तर पर सहज हुए रचनाकारों से प्रस्तुतियों की पंक्तियों में भावपक्ष के नियोजन में तार्किकता की अपेक्षा रखने का आग्रही हूँ. इस हिसाब से पहले दोहे में ही निवेदन के अवसर बन रहे हैं. 

कृपा करो जगदीश हे! करो जगत कल्याण।
प्रेम दया सद्भाव दो, दो शुचि तन-मन-प्राण।। ..

चौथे चरण में तन, मन और प्राण देने की बात हुई है. यहाँ दो के स्थान पर हो किया जाय तो याचकभाव में वैचारिकता अनायास ही व्याप जाएगी. वैसे, शुचि को शुभ किया जाय तो संप्रेषणीयता और बढ़ी प्रतीत होती है.  

विशेष प्रयोजन के लिहाज़ से रचित इन दोहों के लिए बधाइयाँ तथा समय-संदर्भ की रचनाओं केलिए शुभकामनाएँ 

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 9, 2017 at 9:12pm

सुन्दर सुसंकृत सुगठित दोहे हैं सभी शानदार आद० रामबली जी मेरी बधाई स्वीकारें 

Comment by रामबली गुप्ता on February 9, 2017 at 10:47am
बहुत बहुत धन्यवाद भाई मिथिलेश जी। आपके स्पष्टीकरण से शंकाएं समाप्त हुईं।
Comment by Samar kabeer on February 9, 2017 at 10:37am
बहुत ख़ूब भाई मिथिलेश जी,मैं इस विषय पर लिखने में हिचकिचा रहा था कि बात संस्कृत भाषा के शब्द की थी,आपने बड़ी सहजता से इस बिंदु पर विस्तार से बात की ,आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 9, 2017 at 4:08am

आदरणीय रामबली गुप्ता जी, आज अरबी फारसी और अन्य भाषाओं के शब्द हिंदी में घुल-मिल गए हैं उन्हें प्रयोग करने में कोई आशंका नहीं होनी चाहिए. यदि भारतीय छंद में रचना है तो इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हिंदी के संस्कृतनिष्ट तत्सम शब्दों का ही प्रयोग हो. भक्तिकाल के कवियों तुलसी, सूर, मीरा, कबीर, जायसी, रैदास, नाभादास आदि सभी ने भक्ति रस से ओतप्रोत रचनाओं में अरबी-फारसी शब्दों का बहुतायत में प्रयोग किया है. इसलिए ऐसे किसी भी आग्रह से परे रहना ही उचित है. बस कथ्य का सम्प्रेषण हो जाए और शब्द भावानुकूल हो. अब आप इन पंक्तियों को देखिये-

जमा-खरज नींकै करि राखै, लेखा समुझि बतावै।
सूर आप गुजरान मुहासिब, ले जवाब पहुँचावै।               (सूरदास)

लागी मोहिं नाम-खुमारी हो।।
रिमझिम बरसै मेहडा भीजै तन सारी हो।                         (मीरा)

जो सुख पावो राम भजन में, सो सुख नाही अमीरी में ।
भला बुरा सब का सुन लीजै, कर गुजरान गरीबी में ॥             (कबीर)

क्या कहूँ, क्या हूँ मैं उद्भ्रांत? विवर में नील गगन के आज
वायु की भटकी एक तरंग, शून्यता का उज़ड़ा-सा राज़।           (जयशंकर प्रसाद)

आपको इन पंक्तियों में अरबी-फारसी के शब्द मिल जायेंगे. आपने बात उठायी है तो अपने मन की भी कहता चलूँ कि भारतीय छंद के रचनाकारों में दो प्रवृत्तियाँ देखकर आश्चर्य होता है; एक, संस्कृतनिष्ट भाषा के प्रति आग्रह और दूसरा, देशभक्ति-देवभक्ति विषय के प्रति आग्रह. क्या छंदों में उन्हीं विषयों और भाषिक शब्दों को स्थान नहीं मिलना चाहिए जो अन्य अतुकांत या तुकांत यथा गीत, ग़ज़ल, कविता, नज़्म आदि में मिलता है. क्या यह एक बड़ा कारण नहीं है छंद अभ्यासियों की कम होती संख्या का. जबकि मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि छंदों में उन सभी शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है जो संस्कृतनिष्ट हिंदी के नहीं हैं और उन सभी विषयों को अभिव्यक्त किया जा सकता है जो काव्य की अन्य विधाओं में स्थान पाते हैं. संभवतः मैं अपनी बात स्पष्ट कर सका हूँ. चलते चलते एक दोहा-छंद का प्रयास-

देशभक्ति या वंदना, बस छंदों के पास 

सब बातें मैं भी कहूँ, छंदों की है आस

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service