For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सवैये-दीपावली विशेष-रामबली गुप्ता

मत्तगयंद सवैया (सूत्र=211×7+22; भगण×7+गागा)

ज्योति जले घर-द्वार सजे सब, हैं उतरे वसुधा पर तारे।
आज बनी रजनी वधु सुंदर ज्यों पहने मणि के पट प्यारे।।
थाल लिए जुगनू सम दीपक, नाच रहे खुश हो जन सारे।
आश-दिये हरते उर से तम, भाग रहे डर के अँधियारे।।1।।

किरीट सवैया (सूत्र=211×8; भगण×8)

कोटिक दीप जले वसुधा पर, है कितना यह दृश्य सुहावन।
झूम रहे नव आश भरे उर, पूज रहे मिल आज सभी जन।।
ज्योति जलाकर स्वागत में तव राह निहार रहे सबके मन।
हे! कमला गणनायक के सँग, आज पधार करें गृह पावन।।2।।

महाभुजंगप्रयात सवैया(सूत्र=122×8; यगण×8)

दिलों से मिटा द्वेष सारे पुराने, लिए प्यार के मैं तराने चला हूँ।
सभी के दिलों में जने प्यार सच्चा, नई ज्योति ऐसी जगाने चला हूँ।।
न नैराश्य हो जिंदगी में किसी की, दिये आश के मैं जलाने चला हूँ।
गमों का अँधेरा मिटे मूल से ही, धरा दीप से यूँ सजाने चला हूँ।।3।।

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 807

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रामबली गुप्ता on November 3, 2016 at 12:03pm
आद0 सौरभ सर आपकी प्रशंसा से हृदय आह्लादित है। रचनाओं पर आपकी प्रतिक्रिया की हमेशा प्रतीक्षा रहती है मुझे। आपके सुझावों के मुताबिक निरन्तर बेहतर लिखने का प्रयास करता रहूँगा। सादर आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 3, 2016 at 8:47am

भाई रामबली जी, आपने तो दीवाली के उपलक्ष्य में इस मंच को मनोहारी प्रस्तुतियों से प्रसन्न कर दिया है. शिल्प के धरातल पर रचनाएँ शुद्ध हैं. और, अभिव्यक्ति के तौर पर महाभुजंगप्रयात के प्रयास पर मैं जितनी बार वाह-वाह करूँ, कम होगा. मैं आजतक जिस बिन्दु की तरफ आपका ध्यान आकृष्ट करना चाह रहा था, उन बिन्दुओं का महाभुजंगप्रयात की रचना (सवैया) में आपने बखूबी इस्तमाल किया है.

सवैया का मुक्तक स्वरूप निखर कर खिला है. सवैया भी वस्तुतः घनाक्षरी की तरह मुक्तक ही हैं. यानी एक सवैया अपने आप में सम्पूर्ण.

मत्तगयंद और किरीट पर भी अपके अभ्यास से मन-प्रसन्न है. वैसे उन दोनों सवैयों में भाव-शब्द को लेकर तनिक और गठन उन्हें अधिक ग्राह्य बनाता. वैसे अब भी वे समर्थ प्रस्तुतियाँ हैं. लेकिन महाभुजंगप्रयात में भावदशा एकदम से निखर कर शाब्दिक हुई है.

एक बात:
आस को आश न लिखा करें. ऐसा कहीं लिखा हुआ है तो वह अशुद्ध है. आशा का आश समझ लेना आसान है लेकिन आस एक देसज शब्द है, इसे न भूलिए. इसका तत्सम स्वरूप करना उचित नहीं. जैसे देस और देश में भारी अंतर होता है. वैसा ही कुछ यहाँ भी समझ लें.

आपकी इन तीनों प्रस्तुतियों पर हार्दिक बधाइयाँ

Comment by vijay nikore on November 2, 2016 at 9:40pm

इस सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीय रामबली जी।

Comment by रामबली गुप्ता on November 1, 2016 at 5:56am
आद0 भाई वासुदेव अग्रवाल जी आपकी सराहना से अभिभूत हूँ। हृदयतल से आभार आदरणीय
Comment by रामबली गुप्ता on November 1, 2016 at 5:54am
दिल से आभार आद0 सत्यनारायण भाई जी
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 31, 2016 at 3:00pm
आदरणीय रामबलीजी आपके तीनों ही सवैये एक से एक बढ़ कर हैं। बिल्कुल निर्दोष शिल्प , सधी हुई तुकांतता और उतना ही प्रबल भाव पक्ष।
आदरणीय हार्दिक बधाई स्वीकारें।
Comment by Satyanarayan Singh on October 31, 2016 at 1:34pm
आदरणीय रामबली गुप्ता जी अतिसुंदर रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें
Comment by रामबली गुप्ता on October 31, 2016 at 11:04am
सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हृदयतल से आभार आद0 शेख शाहज़ाद भाई साहब
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 31, 2016 at 10:18am
वाह ...तीनों बेहतरीन सवैया गाते हुए बहुत अच्छा लगा। दीपावली पर्व पर बेहतरीन सृजन के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय रामबली गुप्ता जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service