For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन शायद अपना अस्तित्व टटोल रहा है // डॉ० प्राची

फिर बिसरी यादों के पन्ने खोल रहा है,
मन शायद अपना अस्तित्व टटोल रहा है।

गुमसुम गुपचुप ठिठकी सी खिड़की ने अपनी
छोड़ी सकुचाहट भर ली जी भर अँगड़ाई,
रेशम पर बिखरे फूलों ने सिलवट-सिलवट
आहिस्ता से रीत मोहब्बत की दोहराई,

सुध-बुध बिसराए मुस्कानें ओढ़े तन पर
करवट-करवट क्यों मदमाता डोल रहा है?
मन शायद...

रुकी-रुकी पलकों पर दी सपनों ने दस्तक
रुँधे कण्ठ ने आस गीत गाए फिर गुनगुन,
फिर बाँधे मन्नत के धागे मंदिर-मंदिर
कोमल एहसासों के सब ताने-बाने बुन,

नया सवेरा जादू वाली खोल पोटली
बेला-जूही फिर साँसों में घोल रहा है।
मन शायद...

सोने का दीवट था घी से भरा लबालब
आख़िर क्यों लौ जीवन से फिर भी हारी थी,
आँधी-तूफानों का डर था या ठिठुरन थी
आख़िर कौन समझता कैसी लाचारी थी,

महलों की दीवारों से टकराकर बिखरा
हर क्रन्दन इंगित में सब सच बोल रहा है।
मन शायद...

टाट-टाट मटमैले धूल सने रिश्तों पर
उम्मीदों का मख़मल आख़िर कब तक मढ़ना,
लाख मुखौटे ओढ़े हों चाहे दुनिया ने
सीख चुका मन अब सच्चे चेहरों को पढ़ना,

दर्द भरी आँखों से दिल पर रख कर पत्थर
हर जर्जर बन्धन की गिरहें खोल रहा है।
मन शायद...

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 661

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 9, 2017 at 11:56am

आदरणीया प्राची जी ..पढने में अति सुंदर लगा ..इस शानदार गीत के लिए बधाई / 

गुमसुम गुपचुप ठिठकी सी खिड़की ने अपनी
छोड़ी सकुचाहट भर ली जी भर अँगड़ाई,
रेशम पर बिखरे फूलों ने सिलवट-सिलवट
आहिस्ता से रीत मोहब्बत की दोहराई,....एक निवेदन है इन पंक्तियों को मैं पूरी तरह समझ नहीं पा रहा हूँ ..आप इन पंक्तियों को समझने में मेरी मदद करें ..ऐसी तमाम गहन रचनाओं में आदरणीय सौरभ सर मुझ जैसे अल्प जानकारों की मदद अपनी गहन प्रतिक्रीय से कर देते हैं जिससे गहन रचनाओं को समझने में मदद के साथ चिंतन को दिशा मिलती है / सर की बिस्तृत प्रतिक्रिया के न होने के कारण आपसे निवेदन है  सादर 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on February 5, 2017 at 1:26pm

आदरणीया प्राची जी, बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए| सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 4, 2017 at 11:18pm
गीत की सहजता पर आपके अनुमोदन के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2017 at 11:02pm

कमाल ! कमाल !!

प्रस्तुति के कथ्य में वैचारिक ऊहापोह जिस तरह से उभर कर आया है, वह कई तरह के भाव-उद्बोधन का कारण बन रहा है. सुगढ़ किन्तु सहज प्रस्तुति पर हृदयतल से बधाइयाँ स्वीकारें, आदरणीया प्राचीजी. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 4, 2017 at 10:14pm

प्रस्तुत गीत पर आप सबके उत्साहवर्धक अनुमोदन के लिए सादर धन्यवाद आ० समर कबीर जी, आ० मोहम्मद आरिफ जी, आ० सतविन्द्र कुमार जी, आ० इंद्रा विद्या वाचस्पति तिवारी जी , और आ० लक्ष्मण धामी जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2017 at 11:47am

आ. प्राची बहन , सनडर गीत रचना हुई है हार्दिक बधाई .

Comment by indravidyavachaspatitiwari on February 3, 2017 at 7:52am

डा0 प्राची सिह जी आपने सच ही कहा हैः-
टाट-टाट मटमैले धूल सने रिश्तों पर
उम्मीदों का मखमल आखिर कब तक मढ़ना,
लाख मुखौटे ओढ़े हों चाहे दुनिया ने
सीख चुका मन अब सच्चे चेहरों को पढ़ना,
दर्द भरी आँखों से दिल पर रख कर पत्थर
हर जर्जर बन्धन की गिरहें खोल रहा है।
मन को छू लेने वाली व समझदार बनाने वाली रचना के हार्दिक बधाईण्

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 3, 2017 at 7:50am
आदरणीया प्राची जी सादर वन्दन! ,मुग्ध करता हुआ गीत हुआ है,हार्दिक बधाई!
Comment by Mohammed Arif on February 2, 2017 at 9:44pm
आदरणीया प्राची साहिबा आदाब , अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on February 2, 2017 at 2:49pm
मोहतरमा डॉ.प्राची सिंह साहिबा आदाब,उम्दा गीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"भाई, सुन्दर दोहे रचे आपने ! हाँ, किन्तु कहीं- कहीं व्याकरण की अशुद्धियाँ भी हैं, जैसे: ( 1 ) पहला…"
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Feb 28

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service