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रिश्ते--लघुकथा

"तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो", बालों में अंगुलियां फिराते हुए उसने कहा|
"हूँ", कहते हुए वह खड़ी होने लगी|
"थोड़ी देर और बैठो ना", उसने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया| वह वापस बिस्तर पर बैठ गयी|
"सच में तुमको देखे बिना चैन नहीं मिलता", एक बार फिर उसने उसका हाथ पकड़ा|
वह उसको लगभग अनदेखा करते हुए बैठी रही| थोड़ी देर बाद वह फिर से उठने लगी तो उसने कहा "तुम जवाब क्यों नहीं देती, क्या मैं तुम्हें अच्छा नहीं लगता?
"लगते तो हो, लेकिन तुम्हीं नहीं, बाकी सब भी", उसने एक गहरी नजर डाली और खड़ी हो गयी|
उसको बुरा लगा, सबके बराबर बना दिया उसने|
"मैं बाकियों जैसा नहीं हूँ, तुमसे एक रिश्ता सा जुड़ गया है अब", और भी कुछ बोलना चाहता था वह लेकिन उसकी नजर से सामना होते ही जैसे शब्दों ने उसका साथ छोड़ दिया|
"मुझे यहाँ लाने वाला भी मुझसे बहुत गहरा रिश्ता रखता था, आगे से रिश्ते की बात मत कहना"|
वह दरवाजा खोलकर बाहर निकल गयी, उसने भी चुपचाप कपडे पहने और निकल गया|
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on February 26, 2017 at 9:33pm

बहुत बहुत आभार आ डॉ आशुतोष मिश्र जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 20, 2017 at 3:59pm

इस भाव पूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरनीय विनय जी 

Comment by विनय कुमार on January 19, 2017 at 11:14pm

बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद उस्मानी जी आपकी उत्साहवर्धक विस्तृत टिपण्णी के लिए 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 19, 2017 at 9:36pm
वाह... // "लगते तो हो, लेकिन तुम्हीं नहीं, बाकी सब भी"// सम्पूर्ण प्रवाहमय रचना व बेहतरीन पंचपंक्तियों के साथ महिला के इस संवाद ने भी उसकी अपनी हक़ीक़त की दुनिया के 'रिश्तों' को शाब्दिक कर दिया। किसी फ़िल्मी दृश्य की तरह रोचकता लिए हुए इस कथानक पर बेहतरीन भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय विनय कुमार सिंह जी।
Comment by विनय कुमार on January 19, 2017 at 8:30pm

बहुत बहुत आभार आ नीता कसार जी   

Comment by विनय कुमार on January 19, 2017 at 8:29pm

बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी    

Comment by विनय कुमार on January 19, 2017 at 8:29pm

बहुत बहुत आभार मोहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ साहब   

Comment by विनय कुमार on January 19, 2017 at 8:28pm

बहुत बहुत आभार मोहतरम जनाब समर कबीर साहब   

Comment by Nita Kasar on January 19, 2017 at 7:48pm
मजबूर महिला मन की दास्तान,कोई भला कैसे किसी का भरोसा करे ।बधाई आपके लिये ।
Comment by Mohammed Arif on January 19, 2017 at 5:53pm
आदरणीय विनय कुमारजी, नमस्कार ! प्रभावशाली लघुकथा के लिए बधाई ।

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