For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बीस साल बाद आज जोखन लौटा था गाँव, कितनी बार घरवालों ने बुलाया, कितने प्रयोजन पड़े, लेकिन जोखन ने कभी भी गाँव की तरफ जाने का नाम नहीं लिया था| कितनी बार लोगों ने पूछा, लेकिन कभी उसने वजह नहीं बताया| आज गाँव में आकर उसे सब कुछ बदला बदला लग रहा था, कुछ भी पहचाना नहीं लग रहा था| पिताजी से हाल चाल करके वह गाँव में घूमने निकला और कुछ ही देर में गाँव के बाहर खेतों में खड़ा था| खेत भी अब खेत कम, प्लाट ज्यादा लग रहे थे| खेतों को पार करता हुआ वह बगल के गाँव के रास्ते पर चल पड़ा| कभी पगडण्डी जैसा रास्ता अब कंक्रीट का बन गया था लेकिन उसपर से गुजरने वाले कदम अब कम हो गए थे|
बगल के गाँव में पहुँच कर उसने उस घर की तरफ कदम बढ़ाया जहाँ बीस साल पहले वह आखिरी बार आया था| उस आखिरी बात के बाद कि "हमारा साथ संभव नहीं है, अपनी अलग जिंदगी बसा लो| हाँ मेरी दुआएं हमेशा साथ रहेंगी और तुम जितना आगे बढ़ोगे, मैं भी उतना ही खुश रहूंगी", जोखन ने कभी पलट कर नहीं देखा| इस बात का पता उन दोनों ने आज तक किसी किसी को भी नहीं लगने दिया था|
इस बीच उसे खबर मिलती रही कि रंजू की शादी हो गयी और वह किसी और गाँव में चली गयी| वह भी अपनी जिंदगी में व्यस्त होता गया और अपनी हर तरक्की उसे यह सुकून जरूर देती रही कि रंजू को भी ख़ुशी मिल रही होगी| लेकिन पिछले हफ्ते जो खबर उसे मिली उसने उसके होश उड़ा दिए|
अब तो बस मन में एक इच्छा थी कि एक बार पता चल जाए कि जो खबर उसने सुनी थी वह सच है कि नहीं| बड़ी जद्दोजहद के बाद उसने गाँव आकर एक बार रंजू के घर जाकर पता लगाने का फैसला लिया था| घर में तो वह किसी से पूछ नहीं सकता था इसलिए मन ही मन वह मनाता आया था कि खबर गलत ही हो| आखिर उसकी बात गलत कैसे हो सकती थी, उसकी तरक्की से तो रंजू की खुशियाँ बढ़नी थी| बस दो ही घर बाद उसकी गली आने वाली थी और जोखन का दिल बुरी तरह धड़क रहा था कि किसी आवाज ने उसको रोका "अरे जोखन, कैसे हो और कब आये, बहुत साल हो गया था तुमको देखे"|
उसने पलट कर देखा, रंजू के पिताजी थे| उनका चेहरा देखते ही उसे सब समझ आ गया, क्या कहे, क्या पूछे, उसके दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया| बस किसी तरह इतना कह कर कि "आज ही आया था चाचा, ठीक हूँ", पलट कर अपने गाँव की तरफ चल पड़ा| पीछे से आती आवाज उसे जैसे सुनाई ही नहीं पड़ रही थी और कुछ भी पूछने की हिम्मत जोखन गँवा चुका था|
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 369

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on March 1, 2017 at 5:23pm

बहुत बहुत आभार आ शिज्जु शकूर जी, थोड़ा अधूरापन है, कोशिश करता हूँ दुरुस्त करने की


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 27, 2017 at 11:28am

अच्छी कहानी हुई है आ. विनय जी, जोखन के मनोभावों का अच्छा चित्रण किया आपने। फिर भी कहीं एक अधूरापन सा लग रहा है। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
13 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service