For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रश्न सूरज पे ये होना था, वो छिपा क्यूँ है?- ग़ज़ल--पंकज मिश्र

2122 2122 22 1222

सब किताबों से अलग तेरा फ़लसफ़ा क्यूँ है?
उस ने पूछा तू बता दुनिया से जुदा क्यूँ है?

सर्द रातों की वजह पछुवा ये पवन है क्या?
प्रश्न सूरज पे ये होना था, वो छिपा क्यूँ है?

पेट खाली औ न हो घर तो फिर यही तय था
पूछ मत यारा धुआँ घाटों पे उठा क्यूँ है?

छोड़ चिंता ये गरीबों की चल रज़ाई में
नींद में अपनी ख़लल खुद ही डालता क्यूँ है?

कर्म का फल तो सभी को ही है यहाँ मिलना
प्रीत तू भय से जगाने की सोचता क्यूँ है?
=================================

एक शेर, इस्लाह के लिए
22 22 22 22
चाँद-अमावस में वस्ल कहाँ
जब पाख ही काली हिज़्र की है
=================================

मौलिक अप्रकाशित

Views: 610

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 20, 2017 at 8:36pm
आदरणीय गिरिराज सर सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 20, 2017 at 8:36pm
आदरणीय बाऊ जी सादर प्रणाम।
इस्लाह वाले शेर में कहना चाह रहा हूँ----कुछ चीजें नियत हैं, चाँद और अमावस्या की रात में मुलाकात नहीं लिखी, क्योंकि चाँद ठहरा रौशनी का माध्यम, और अमावस्या कृष्ण पक्ष की रात होती है।

जिस प्रकार चाँद-अमावस में, धरती-गगन में मिलन असम्भव है वैसे ही कुछ मुलाकातें महज़ सोच में ही संभव हैं
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 20, 2017 at 8:35pm
आदरणीय बाऊ जी सादर प्रणाम।
इस्लाह वाले शेर में कहना चाह रहा हूँ----कुछ चीजें नियत हैं, चाँद और अमावस्या की रात में मुलाकात नहीं लिखी, क्योंकि चाँद ठहरा रौशनी का माध्यम, और अमावस्या कृष्ण पक्ष की रात होती है।

जिस प्रकार चाँद-अमावस में, धरती-गगन में मिलन असम्भव है वैसे ही कुछ मुलाकातें महज़ सोच में ही संभव हैं
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 20, 2017 at 7:39pm
आदरणीय सुरेंद्र सर बहुत-बहुत आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2017 at 8:25pm

आदरणीय पंकज भाई  , खूब सूरत गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2017 at 8:25pm

आदरणीय पंकज भाई  , खूब सूरत गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on January 16, 2017 at 4:51pm
आदरणीय पंकज कुमार मिश्राजी, अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई ।
Comment by Samar kabeer on January 16, 2017 at 10:51am
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आपने जो शैर इस्लाह के लिये दिया है,उसके भाव स्पष्ट नहीं हैं ।
Comment by नाथ सोनांचली on January 16, 2017 at 8:30am
आद0 पंकज मिश्र जी उम्दा ग़ज़ल कहीं आपने, दाद के साथ मुबारकबाद कबूल फरमाएँ। कुवहः शैर तो सीधे दिल पर असर करते है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service