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चांदनी ... (क्षणिका)

चांदनी ... (क्षणिका)

तमाम शब्
माहताब
अर्श पर
मुझे

घूरता रहा
रकीबों सा

निचोड़ता रहा
मन की झील पर
मैं
उसकी
चांदनी

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 861

Comment

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Comment by Sushil Sarna on January 8, 2017 at 1:37pm

आदरणीय Mohammed Arif    साहिब सृजन में निहित भावों को अपने स्नेहिल शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 8, 2017 at 1:36pm

आदरणीय विजय निकोर साहिब सृजन में निहित भावों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by Mohammed Arif on January 7, 2017 at 10:48pm
आदरणीय सुशील सरनाजी, सुंदर भावों का अंकन करने वाली क्षणिका के लिए बधाई !
Comment by vijay nikore on January 7, 2017 at 9:45pm

 //निचोड़ता रहा 
मन की झील पर 
मैं 
उसकी 
चांदनी//

वाह, आनन्द आ गया। बहुत ही खूबसूरत भाव ! बधाई, आदरणीय सुशील जी।

Comment by Sushil Sarna on January 7, 2017 at 1:18pm

आदरणीय  रामबली गुप्ता     जी प्रस्तुति को अपने आत्मीय  स्नेह से मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by रामबली गुप्ता on January 7, 2017 at 6:43am
क्या गज्जब क्षणिका हुई है भाई सुशील सरना जी। कमाल का बिम्ब। बहुत खूब बधाई प्रेषित
Comment by Sushil Sarna on January 6, 2017 at 2:14pm

आदरणीय   गिरिराज भंडारी   जी प्रस्तुति को अपने आत्मीय  स्नेह से मान देने का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 6, 2017 at 1:54pm

आदरणीय सुशील भाई , कम शब्दों मे सटीक कविता रची है आपने , हार्दिक बधाइयाँ

Comment by Sushil Sarna on January 5, 2017 at 1:19pm

आदरणीय  Mahendra Kumar    जी प्रस्तुति को अपने आत्मीय  स्नेह से मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 5, 2017 at 1:19pm

आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज'   जी प्रस्तुति को अपने आत्मीय  स्नेह से मान देने का हार्दिक आभार। 

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