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ख़्वाब का माहताब ....

ख़्वाब का माहताब ....

तुम्हारे
अंधेरों में
मेरे हिस्से के
उजाले
तुम्हारी मुहब्बत की
गिरफ़्त में
बे-आवाज़
सिसकते रहे

और तुम
मेरी चश्म से
शीरीं शहद से
लम्हों को
कतरों में समेटे
बहते रहे

मेरा ज़िस्म
तुम्हारे लम्स
की हज़ारों
खुशबुओं के  
कफ़स में
सांस लेता रहा

आफ़ताब की शरर ने
उम्मीद की दहलीज़ को
हक़ीक़त की
आतिश से
ख़ाक में
तब्दील कर दिया

किसी के
इंतज़ार को
बुझते हुए दिए ने
अंधेरों का
अंजाम दे दिया

पलकों की चिलमन
रूहानी माहताब  की
मुन्तज़िर हो गई

वक्त की गर्द में
हसीं लम्हों के शजर 

बेजान होते गए 

तुम दूर से
और दूर होते गए


रूख़सारों पे
अश्कों के निशां
सूखने लगे
तारीकियों के पैराहन में
तदबीर सोने लगी
हर सहर
तेरा इंतज़ार
मेरी शब् का
जवाब बन गई

और
तुम्हारी तमन्ना
मेरे ख़्वाब का
माहताब बन गई

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on January 8, 2017 at 1:23pm

आदरणीय दीपक कुमार जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह से उपकृत हुई , आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 8, 2017 at 1:22pm

आदरणीय विजय निकोर साहिब प्रस्तुति में निहित भावों ने आपको छुआ , सृजन धन्य हुआ। आपकी प्रोत्साहन भरे शब्दों का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 8, 2017 at 1:18pm

adrneey giriraj jee bhaiee saahib prastuti ko apne sneh se shobhit karne ka haardik aabhar 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 8, 2017 at 11:37am

क्या बात , बहुत खूब आदरणीय सुशील भाई ....  नज़म के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by vijay nikore on January 7, 2017 at 10:00pm

 //

रूख़सारों पे 
अश्कों के निशां 
सूखने लगे 
तारीकियों के पैराहन में 
तदबीर सोने लगी 
हर सहर 
तेरा इंतज़ार 
मेरी शब् का 
जवाब बन गई

और
तुम्हारी तमन्ना 
मेरे ख़्वाब का 
माहताब बन गई//

वाह, वाह, आदरणीय सुशील जी.. कमाल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। आनन्द आ गया।

Comment by दीपक कुमार on January 7, 2017 at 12:24pm

 

वाह... बहुत खूब नज़्म

Comment by Sushil Sarna on January 6, 2017 at 8:31pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'  जी प्रस्तुति में निहित भावों को अपनी मधुर प्रतिक्रिया से शोभित करने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 6, 2017 at 8:31pm

आदरणीय Mahendra Kumar जी प्रस्तुति को अपने मधु लिप्त शब्दों से पुरस्कृत करने का हार्दिक आभार।

Comment by नाथ सोनांचली on January 6, 2017 at 5:07pm
आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन, बेहद खूबसूरत शब्द संयोजन के साथ आपने भावभियक्ति की है, इस बेहद उम्दा प्रस्तुति पर मेरी अंतश हृदय से आपको बधाइयाँ। सादर
Comment by Mahendra Kumar on January 6, 2017 at 3:30pm
आदरणीय सुशील सरना जी, इस इश्क़ से लबरेज़ जज़्बाती नज़्म के लिए बस इतना ही कहना चाहूँगा... शानदार! ज़बरदस्त!! ज़िन्दाबाद!!! आपकी लेखनी से ऐसे ही मोती निकलते रहें। ढेरों बधाई। सादर।

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