ख़्वाब का माहताब ....
तुम्हारे
अंधेरों में
मेरे हिस्से के
उजाले
तुम्हारी मुहब्बत की
गिरफ़्त में
बे-आवाज़
सिसकते रहे
और तुम
मेरी चश्म से
शीरीं शहद से
लम्हों को
कतरों में समेटे
बहते रहे
मेरा ज़िस्म
तुम्हारे लम्स
की हज़ारों
खुशबुओं के
कफ़स में
सांस लेता रहा
आफ़ताब की शरर ने
उम्मीद की दहलीज़ को
हक़ीक़त की
आतिश से
ख़ाक में
तब्दील कर दिया
किसी के
इंतज़ार को
बुझते हुए दिए ने
अंधेरों का
अंजाम दे दिया
पलकों की चिलमन
रूहानी माहताब की
मुन्तज़िर हो गई
वक्त की गर्द में
हसीं लम्हों के शजर
बेजान होते गए
तुम दूर से
और दूर होते गए
रूख़सारों पे
अश्कों के निशां
सूखने लगे
तारीकियों के पैराहन में
तदबीर सोने लगी
हर सहर
तेरा इंतज़ार
मेरी शब् का
जवाब बन गई
और
तुम्हारी तमन्ना
मेरे ख़्वाब का
माहताब बन गई
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डॉ आशुतोष जी प्रस्तुति को अपनी स्नेह बरखा से पल्लवित करने का हार्दिक आभार। भविष्य में कठिन उर्दू शब्दों का हिंदी अनुवाद देने का प्रयत्न करूंगा। हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ये मेरा सौभाग्य है की आप जैसे ज्ञानियों के चक्षुओं ने सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित किया। आपका हृदय की असीम गहराईयों से हार्दिक आभार। प्रस्तुति आदरणीय समर कबीर जी की मार्गदर्शन के अनुसार पूर्व में ही संशोधित कर दी थी। आपके इस आत्मीय स्नेह का शुक्रिया।
आदरणीय डॉ गोपाल जी भाई साहिब आप जैसे गुणीजनों से मुखारविंद से सृजन को जो मान मिला है उसके लिए मैं हृदयतल से आपका आभारी हूँ।
आदरणीय समर कबीर साहिब आप के दिल से निकले मन मुदित करते अल्फ़ाज़ों ने प्रस्तुति को अमरत्व प्रदान किया है। बन्दा आपका शुक्रगुज़ार है। आपके द्वारा इंगित त्रुटियों को ठीक करके उसे संशोधित रूप में पुनः प्रेषित कर दिया था जो आपके सामने है। आपका ये मार्गदर्शन सदैव मेरे सृजन को जीवंत कर देता है । इस हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया। सदर ....
वाह वाह वाह ... आपने क्या खूब नज़्म लिखी है. लाज़वाब. सीधे दिल में उतर गई. दिल खुश कर दिया आपकी प्रस्तुति ने. आदरणीय सुशील सरना सर, इस शानदार प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. आदरणीय समर कबीर जी द्वारा साझा किये अनुसार संशोधन पश्चात् नज़्म और भी ज्यादा निखर जायेगी. सादर
आ० सरना जी . आप जब रंग में होते हैं तो बस रंग में होते हैं . आपकी कविता बहुत ही हसीन कविता है . सादर .
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