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चांदनी ... (क्षणिका)

चांदनी ... (क्षणिका)

तमाम शब्
माहताब
अर्श पर
मुझे

घूरता रहा
रकीबों सा

निचोड़ता रहा
मन की झील पर
मैं
उसकी
चांदनी

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on January 8, 2017 at 1:37pm

आदरणीय Mohammed Arif    साहिब सृजन में निहित भावों को अपने स्नेहिल शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 8, 2017 at 1:36pm

आदरणीय विजय निकोर साहिब सृजन में निहित भावों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by Mohammed Arif on January 7, 2017 at 10:48pm
आदरणीय सुशील सरनाजी, सुंदर भावों का अंकन करने वाली क्षणिका के लिए बधाई !
Comment by vijay nikore on January 7, 2017 at 9:45pm

 //निचोड़ता रहा 
मन की झील पर 
मैं 
उसकी 
चांदनी//

वाह, आनन्द आ गया। बहुत ही खूबसूरत भाव ! बधाई, आदरणीय सुशील जी।

Comment by Sushil Sarna on January 7, 2017 at 1:18pm

आदरणीय  रामबली गुप्ता     जी प्रस्तुति को अपने आत्मीय  स्नेह से मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by रामबली गुप्ता on January 7, 2017 at 6:43am
क्या गज्जब क्षणिका हुई है भाई सुशील सरना जी। कमाल का बिम्ब। बहुत खूब बधाई प्रेषित
Comment by Sushil Sarna on January 6, 2017 at 2:14pm

आदरणीय   गिरिराज भंडारी   जी प्रस्तुति को अपने आत्मीय  स्नेह से मान देने का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 6, 2017 at 1:54pm

आदरणीय सुशील भाई , कम शब्दों मे सटीक कविता रची है आपने , हार्दिक बधाइयाँ

Comment by Sushil Sarna on January 5, 2017 at 1:19pm

आदरणीय  Mahendra Kumar    जी प्रस्तुति को अपने आत्मीय  स्नेह से मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 5, 2017 at 1:19pm

आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज'   जी प्रस्तुति को अपने आत्मीय  स्नेह से मान देने का हार्दिक आभार। 

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