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भड़की ज्वाला देश में, काप रहे हैं हाथ।
कैसे दीपक अब जले, बिना अमन के नाथ।।

कोई भूखा सो रहा, तन भी पड़ा उघार।
माता जिस्म पिला रही, कोशो दूर बहार।।

धर्म जाति में नर फसा, रचता रोज कुकर्म।
रक्त पिपासा बढ़ रही, बची नही है शर्म।।

फूलों में अब हे सखे!, फीकी पड़ी सुगन्ध।
जनमानस में घुल रही, नित बारूदी गंध।।

गूंज रही हर पल यहाँ, माताओं की चीख।
बिंदिया रोकर कह रही, कब लेंगे हम सीख?

आज मनुजता है दुखी, दानवता मद-चूर।
नित्य क्लेश फैला रहे, आतंकी अतिक्रूर।।

संसद में नेता लड़ें, बाहर खूनी खेल।
मुजरिम को इज्जत मिले, ऐशगाह है जेल।।

राजनीति गंदी हुई, नेता आदमखोर।
श्वेत वसन में ये सभी, रंग बिरंगे चोर।।

हर कोई मिलता यहाँ, पहने हुए नकाब।
किसको अब अच्छा कहें, किसको कहें खराब।।

मनुज-मनुज में प्यार हो, फैले स्नेह अपार।
शील, विनय, संयम बिना, मानव है बेकार।।

वसुधा सकल कुटुंब है, सोच करें साकार।
सिर्फ अमन औ' चैन हो, हर क्षण करें प्रचार।।

आशा औ उत्साह की, किरण बिखेरें आज।
मानवता फूले-फले, सदा रहे ऋतुराज।।

अमन-चैन के लिए अब, हों सब एकाकार।
नेह-दीप घर घर जले, सपने हों साकार।।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by नाथ सोनांचली on November 17, 2016 at 2:01pm
आदरणीय अशोक कुमार जी और आद0 राजेश कुमारी जी ह्रदय से आभार आपका

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 16, 2016 at 12:38pm

बहुत शानदार दोहे लिखे हैं सभी एक से बढ़कर एक हार्दिक बधाई लीजिये .हाँ कहीं कहीं टंकण त्रुटी है दूर कर लीजियेगा आद० अशोक जी की बात पर भी गौर करें 

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 3, 2016 at 11:25pm

वाह ! सुंदर दोहे रचे हैं आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी. यह अवश्य है की कुछ जगह ध्यान देने की आवश्यकता है. अंतिम दोहे के प्रथम चरण का अंत यगण से हुआ है. देख लें. सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2016 at 3:23pm

अति सुंदर सार्थक और सामयिक दोहे रचे है | हार्दिक बधाई श्री सुरेन्द्र नाथ सिंह जी 

Comment by नाथ सोनांचली on November 2, 2016 at 3:46pm
आदरणीय रामबली जी और समर कबीर साहब आप दोनों को सादर प्रणाम। रचना पसंद करने के लिए दिल से आभार
Comment by Samar kabeer on November 1, 2016 at 5:44pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,बढ़िया दोहे रचे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by रामबली गुप्ता on November 1, 2016 at 7:37am
सभी दोहे सुंदर एवं शिल्पगत हैं। बधाई स्वीकार करें आद0 सुरेन्द्र नाथ जी।

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