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जिन्दगी है जो सफर राह पे चलते रहिये

तरही गजल
बह्र* - 2122 1122 1122 22

जिन्दगी है जो सफर राह पे चलते रहिये,
वक्त के साथ भी अंदाज बदलते रहिये।

माँ पिता और हैं उस्ताद धरा पर जिनकी
नेह और ज्ञान की छाया में ही पलते रहिये।।

रिश्ते होते है सदा चाक की मिट्टी जैसे
आप चाहेंगे उसी रूप में ढलते रहिये।।

शह्र है एक अमन का, वो बनारस मेरा
प्यार सुख चैन जिधर चाहे निकलते रहिये।।

परवरिश में तो है अत्फ़ाल पे सख़्ती लाज़िम,
आँख में देख के आंसू न पिघलते रहिये।।

वो ख़ुदा है उसे मालूम हैं आमाल सभी
फिर गुनाहों को छुपा खुद को न छलते रहिये।।

आस जीवन में बड़ी बात हमेशा होती
*हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिये।*

है पतन के लिए बस एक ही गलती काफी
पाप का पंक दिखे राह बदलते रहिये।।

नाथ जो पास तेरे, कल वो किसी और का था
देख दौलत की चमक आप सँभलते रहिये।।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by गिरिराज भंडारी on October 19, 2016 at 8:21pm

आदरणीय सुरेन्द्र भाई , गज़ल अच्छी हुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें । लेकिन पढ के ऐसा लगा कि प्रयास और किया जा सकता था , देखियेगा भला , बार बार पढ़ के  , शायद कुछ और अच्छा हो सके ।

Comment by Shyam Narain Verma on October 19, 2016 at 10:36am
इस लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 

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