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मखमली यादों में लिपटी ज़िन्दगानी और है- शिज्जु शकूर

2122 2122 2122 212

मखमली यादों में लिपटी ज़िन्दगानी और है

वो लड़कपन खूब था अब ये  जवानी और है

 

आसमाँ सर पर उठाकर तूने साबित कर दिया

तेरा किस्सा और कुछ था हक़बयानी और है

 

मैं छुपाता हूँ जहाँ से दर्द-ए-दिल ये बोलकर

हिज़्र की तासीर कुछ मेरी कहानी और है

 

वस्ल की बातें वो लमहे भूल भी जाऊँ मगर

मेरे दिल में इक मुहब्बत की निशानी और है

 

आबले हाथों के मुझसे कह रहे हैं फूटकर

कामयाबी और शय है जाँफ़िशानी और है

 

(हक़बयानी- सच्ची बात कहना, हिज्र- विरह, तासीर- असर,

वस्ल- मिलन, आबले- छाले, जाँफ़िशानी- कड़ी मेहनत)

 


-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 7, 2016 at 5:38pm

आ. सुशील सरना सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 7, 2016 at 5:38pm

आदरणीय रवि शुक्ला जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका, हक़बयानी को लेकर आपका सुझाव सही है पर मुनासिब शब्द कुछ मिल नहीं रहा था, वस्ल की रातें कई दफे इस्तेमाल हो चुका है इसके कई अर्थ हैं पर जम का पहलू तो  नहीं आना चाहिए,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 7, 2016 at 5:35pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ. वासुदेव जी

Comment by Sushil Sarna on October 7, 2016 at 2:02pm

मखमली यादों में लिपटी ज़िन्दगानी और है
वो लड़कपन खूब था अब ये जवानी और है

आसमाँ सर पर उठाकर तूने साबित कर दिया
तेरा किस्सा और कुछ था हक़बयानी और है
क्या दिलकश अंदाज़ है हकबयानी का .. वाह आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब समाँ बाँध दिया आपने इस दिलकश ग़ज़ल के खूबसूरत अहसासों से। दिली दाद कबूल फरमाएं सर।

Comment by Ravi Shukla on October 7, 2016 at 11:11am

आदरणीय शिज्‍जु जी बहुत खुब । बहुत ही बढि़या गजल हुई है दिल से बधाई कुबूल करें 

मखमली यादों में लिपटी ज़िन्दगानी और है

वो लड़कपन खूब था अब ये  जवानी और है  वाह वाह बेहतरी मतला हर दिल में मखमली यादों की एक खूबसूरत दुनिया रहती है 

आसमाँ सर पर उठाकर तूने साबित कर दिया

तेरा किस्सा और कुछ था हक़बयानी और है  । तेरा किस्‍सा और है पर हकबयानी और है । तेरे किस्‍से से अलग ये हकबयानी और है हस्‍व के रुक्‍न में गजल के मेयाार के मुताबिक और भी बेहरत शब्‍द की गुजाइश है जो भी आप उचित समझें ( हमारा व्‍यक्तिगत मत है )

मैं छुपाता हूँ जहाँ से दर्द-ए-दिल ये बोलकर

हिज़्र की तासीर कुछ मेरी कहानी और है  वाह वाह क्‍या शेर कहा है 

वस्ल की बातें वो लमहे भूल भी जाऊँ मगर

मेरे दिल में इक मुहब्बत की निशानी और है.... बहुत खूब एक जानकारी विद्वतजन से चाहेंगे अगर इस शेर के उला में वस्‍ल की बातें को वस्‍ल की राते कहा जाए तो क्‍या जम का पहलू नुमार्या होगा 

आबले हाथों के मुझसे कह रहे हैं फूटकर

कामयाबी और शय है जाँफ़िशानी और है  अय हय क्‍या बात कही है बहुत बढि़या 

पूरी गजल पर दिली दाद और मुबारक बाद कुबूल करें । 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 7, 2016 at 10:33am

आदरणीय शकूर साहब सुंदर ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें.

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