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गजल(काश मुझको....)

बहर-रमल मुसद्दस सामिन
2122 2122 2122
+++
काश मुझको भी मिला उस्ताद होता!
शाइरी का इक जहाँ आबाद होता।1

हर्फ अपने बात हर दिल की पिरोते,
तालियाँ पिटतीं बहुत इरशाद होता।2

राबिते ढ़ल काफिये मिलते जमीं से
हर बहर में प्यार का संवाद होता।3

फिर कहाँ कोई भटकता रूक्न होता,
नित नया इक शेर तब ईजाद होता।4

रूप का डंका बजाते फिर रहे सब,
हुश्न हर ताबीर से आजाद होता।5

मानती अपनी गजल कविता सुहाती,
फिर नहीं मन में जरा अवसाद होता।6

बेकहे कुछ तो सिखाया रहबरों ने,
रहजनों से मैं सदा नाबाद होता।7
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on September 26, 2016 at 8:15pm
इस्लाह के लिए मोहतरम समर जी का शुक्रगुजार हूँ,आदाब!
Comment by Manan Kumar singh on September 26, 2016 at 8:13pm
आभारी हूँ आदरणीय सुरेशजी।
Comment by Manan Kumar singh on September 26, 2016 at 8:12pm
आभारी हूँ आदरणीय मिश्रा जी।
Comment by Samar kabeer on September 18, 2016 at 3:55pm
जनाब मनन कुमार जी आदाब,बढ़िया ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
"फिर कहाँ कोई भटकती रुक्न होती
नित नया अशआर तब ईजाद होता"
इस शैर में दो तरह के दोष हैं,
पहला-"रुक्न" पुल्लिंग है
दूसरा-"अशआर"बहु वचन है, देखियेग ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 18, 2016 at 3:54pm
आदरणीय मनन जी इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 18, 2016 at 3:44pm
आदरणीय मनन जी बहुत ही सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।
Comment by Manan Kumar singh on September 16, 2016 at 5:22pm
आभार आपका आदरणीय अकेला जी।
Comment by Manan Kumar singh on September 16, 2016 at 5:16pm
आभार आपका
Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 16, 2016 at 2:50pm

आ.  मनन जी बहुत खूब !!! पहले के दो  शेर बड़े अच्छे लगे मुझे !!! आपको शुभकामनाएं !!!!

कृपया ध्यान दे...

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