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ज़िंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है

२१२२   ११२२  ११२२  २२/ ११२

ज़िंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है

तेरी आँखों में छुपा ख्वाब कोई आज भी है 

 

पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन अपना 

कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है

 

गुनगुना लीजे कोई गीत अगर हों तन्हा 

दिल की धड़कन भी है साँसों का हसीं साज भी है

 

वो खुदा अपने लिखे को ही बदलने के लिए

सबको देता है हुनर अलहदा अंदाज भी है

 

काम करना ही हमारा है इबादत रब की

इस इबादत में छिपा  ज़िंदगी का  राज भी है

 

कुछ कलम के यहाँ ऐसे भी पुजारी हैं हुए

सामने राजा ने जिनके दिया रख ताज भी है 

 

काम करता जो बुरे लोग हैं नफरत करते

काम गर अच्छे करे तब तो कहें नाज भी है   F-49

मौलिक व अप्रकाशित  

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Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 9:27pm

गुनगुना लीजे कोई गीत अगर हों तन्हा 

दिल की धड़कन भी है साँसों का हसीं साज भी है---बहुत  सुन्दर शेर 

बाकी शेरो पर आद० रवि शुक्ल भैया अपना मशविरा दे चुके हैं जो काबिले गौर है थोड़े से प्रयास के बाद ग़ज़ल और निखर उठेगी |आपको बहुत बहुत बधाई आद० डॉ० आशुतोष जी 

 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 27, 2016 at 5:59pm

आदरणीय रवि सर ..रचना पर बिस्तृत मार्गदर्शक प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ पतझड़ों वाले शेर पर बार बार मैं उलझ तो रहा था ग़ज़ल पोस्ट करने में समय भी लग रहा था समझ में तो नहीं आ रहा था पर रह रह कर कुछ कमी से लग रही थी आपके मार्गदर्शन से बात बिलकुल समझ में आ गयी 

इस इबादत में छुपा ज़िंदगी का राज भी है ..करू तो कैसा रहेगा 

राजा वाले शेर पर चिंतन कर रहा हूँ इसमें सुधार करूंगा 

आदरणीय सर ..नाज मैंने इसलिए लिखा जिन कमियों की बजह से  उपेक्षा और नफ्रफ मिलती है उनमे सुधर होने से उन्हें गर्व भी होगा सर  ..काम तू करता बुरे लोग भी नफरत करते 

काम जब अच्छे करे तब तो कहें नाज भी है ...कुछ इस तरह से परिवर्तित करना चार रहा हूँ कल इसे फिर ठीक करूंगा ...सर आपके मशविरे पर अमल करने की कोशिस करूंगा .हार्दिक धन्यवाद और सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Ravi Shukla on July 27, 2016 at 4:38pm

आदरणीय आश्‍ुातोष जी गजल के लिये आपको बधाई 

मतले पर थोड़ाा अधिक समय देने का निवेदन हैै 

ज़िंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है

तेरी आंखों मे छुपा ख्‍वाब कोई आज भी है  एक त्‍वरित सुझाव के तौर पर इसे देख सकते है 

पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन जब भी

कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है  उला में जब आप जब भी कहेंगे तो एक समय के सापेक्ष स्थ्‍िाति आप बयान करेंगे तो सानी में उस का तर्क पूरा करना होगा तो उला में जब भी को अपना से बदल कर देंखे 

जीवन पतझड़ भी है तो कोपलों जैैसा नवजीवप भीी है 

पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन अपना

कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है

काम करना ही हमारा है इबादत रब की

इस इबादत में छिपे ज़िंदगी के राज भी हैं

 

कुछ कलम के यहाँ ऐसे भी पुजारी हैं हुए

जिनके आगे रखे राजाओं ने खुद ताज भी हैं

   इन दो शेर में रदीफ में अनुस्‍वार हैंं हो गया है जिससे रदीफ बदल रहा है इन्‍हें फिर से देख लें 

आज जो करते हैं नफरत वो तुझे कल चाहें

फिर  कहेंगे वही तुझसे कि उन्हें नाज भी है  हालांकि इस शेर में नाज करने का कारण स्‍पष्‍ट नहीं हो रहा इस लिये इसे थोडा और साफ कहने की जरूरत है  ।   बाकी शुभ शुभ 

हॉं इस शेर के लिये अलग से बधाई लीजिये 

गुनगुना लीजे कोई गीत अगर हों तन्हा 

दिल की धड़कन भी है साँसों का हसीं साज भी है  सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on July 27, 2016 at 3:58pm
बहुत खूब ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

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