For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- पाँव के नीचे से धरती सर से छप्पर ले गया। ( दिनेश कुमार )

2122--2122--2122--212

पाँव के नीचे से धरती सर से छप्पर ले गया
ज़लज़ला कुछ बेबसों के सारे गौहर ले गया

ज़िन्दगी के खुशनुमा लम्हों से वो महरूम है
शाम को जो साथ अपने घर में दफ़्तर ले गया

हौसला, हिम्मत, ज़वानी, ख़्वाहिशें, बे-फिक्र दिल
वक़्त का दरिया मेरा सब कुछ बहा कर ले गया

सारी दुनिया जीत कर भी हाथ खाली ही रहे
वक़्त-ए-रुख़सत इस जहाँ से क्या सिकन्दर ले गया

छु न पाये हाथ उसके जब मेरी दस्तार को
तैश में आकर वो काँधे से मेरा सर ले गया

जब हुआ ससुराल में नव-ब्याहता का दिल उदास
इक हवा का झोंका उसको पल में पीहर ले गया

मुझको महफ़िल में दिखानी थी तख़य्युल की उड़ान
मैं बिना पर के परिन्दों को फ़लक़ पर ले गया

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1148

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बशर भारतीय on May 24, 2016 at 2:51pm
आ. दिनेश कुमारजी बेमिसाल ग़ज़ल है हर शे'र लाजवाब है बधाई आपको
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 24, 2016 at 2:33pm

वाह वाह ..बहुत खूब ..सभी शेर उम्दा हैं..बहुत बहुत बधाई 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 23, 2016 at 10:26pm
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय
Comment by जयनित कुमार मेहता on May 23, 2016 at 10:15pm
आदरणीय दिनेश जी, बहुत खूब ग़ज़ल कही आपने।


"जब हुआ ससुराल में नव-ब्याहता का दिल उदास
इक हवा का झोंका उसको पल में पीहर ले गया"

वाह जनाब,वाह!!
Comment by kanta roy on May 23, 2016 at 4:44pm
मुझको महफ़िल में दिखानी थी तख़य्युल की उड़ान
मैं बिना पर के परिन्दों को फ़लक़ पर ले गया------- वाह ! वाह ! क्या खूब कही है आपने ! लाजवाब हो गये ! बधाई आपको आदरणीय दिनेश जी ।
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 22, 2016 at 5:53pm

वाह वाह .........दिनेश साहेब....जिंदाबाद  

Comment by vandana on May 21, 2016 at 8:34pm

कमाल का मतला आदरणीय दिनेश जी कमाल ग़ज़ल बहुत ही बढ़िया 


ज़िन्दगी के खुशनुमा लम्हों से वो महरूम है
शाम को जो साथ अपने घर में दफ़्तर ले गया ........ पिछले दिनों अच्छी तरह वास्ता पड़ा है इस अनुभव से 

Comment by दिनेश कुमार on May 21, 2016 at 7:52pm
शुक्रिया आदरणीया आभा जी। इनायत है आपकी।
Comment by दिनेश कुमार on May 21, 2016 at 7:51pm
शुक्रिया आ मिश्रा जी।
Comment by दिनेश कुमार on May 21, 2016 at 7:50pm
बहुत बहुत शुक्रिया आ. अनुज साहिब। इनायत है सर आपकी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service