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ग़ज़ल -- मैं कमाता हूँ बड़ी मेहनत से। ( दिनेश कुमार )

2122--1122--22

भाई माँ बाप वफ़ा है पैसा
दौरे-हाज़िर का ख़ुदा है पैसा

हाथ का मैल ही मत समझो इसे
जिस्म की एक क़बा है पैसा

जा के बाज़ार में देखो तो सही
हर तरफ जल्वा-नुमा है पैसा

जिसको हासिल है वही इतराए
खूबसूरत सा नशा है पैसा

यूँ दुआ अपनी जगह काम आए
अस्पतालों में दवा है पैसा

वक़्त से पहले या किस्मत से अधिक
आज तक किसको मिला है पैसा

मैं कमाता हूँ बड़ी मेहनत से
मुझको मालूम है क्या है पैसा

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 6, 2016 at 5:49pm
वाह वाह , क्या बात है . सुन्दर .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 6, 2016 at 12:24am

आदरणीय दिनेश भाई, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

Comment by Samar kabeer on May 5, 2016 at 2:57pm
जनाब दिनेश कुमार साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही है बधाई स्वीकार करें, लगता है वक़्त कम दिया आपने इस ग़ज़ल को।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2016 at 9:46pm
वाह दिनेश जी क्या खूब रदीफ़ निभाई है समय दें तो कसावट भी आ ही जायेगी
Comment by दिनेश कुमार on May 4, 2016 at 8:39pm
बिल्कुल सही पकड़े हैं आदरणीय निलेश सर जी। मानता हूँ संकलन के लिए ही कही थी। सिर्फ तुकबंदी ही है। आइन्दा ध्यान रहेगा। इसको pvt mode पर करता हूँ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2016 at 8:35pm

अच्छी ग़ज़ल है दिलेश भाई ...लेकिन  आपने अबतक जिस अंदाज़ में मंच को नवाज़ा है, उस के मुकाबले थोड़ी कमज़ोर है.
संकलन के लिए एक ग़ज़ल और कह दी आपने लेकिन आप से शाइरी की उम्मीद है ... 
सादर 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 4, 2016 at 8:35pm
वाह दिनेश कुमार जी अति उत्तम पैसे की बहुत सुन्दर परिभाषा पेश की है बधाई हो

कृपया ध्यान दे...

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