For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शून्याकृति

 

अकेलापन

अकेला नहीं आता

जाने कहाँ-कहाँ से कैसे

अपने नहीं तो पराय कितने

दर्द साथ बटोर लाता है

गम्भीर-तन्मय, ध्यान मग्न

कोई हृदय-सम्बँध हो मानो

पीड़ा से पीड़ा का

 

गूँजते हैं पूनो में सीने में

अमावस में भयानक वीरानों में

बरसातों में, पीड़ा की रातों में

ध्वनिगुँजित स्नेहमय स्वर

उखड़े-उखड़े अधबने अधूरे

वेदनामयी मूक पुकार बन आए

कि दर्द ही अब हो जैसे गहन सत्य

दर्द ही ज़िन्दगी का इमान बना हो

 

हर घने बड़े-बड़े दर्द के बीच चुपचाप

अकेलापन अपने इर्द-गिर्द लगातार

भयानक धारदार सवाल बुनता है

ईश्वर के आस-पास भी अब मानो

कुछ सरल नहीं लगता ...

मेघों की गर्जन संघर्षवादी सत्य है कोई

या बरस-बरस कर अब अन्त से पहले

है एक आख़री ठहाका

 

ऐसे में साँसें भारी, आँखें धूमित

करती हैं इन्तज़ार

बुझते तारों के राख हो जाने का

आओ बैठो, बैठो कुछ और  निकट

इस झुकी-झुकी सँवलाई साँझ हम कर लें

विदा के बाद पलट गई ज़िन्दगी के बाद की बातें

और ऐसे में कर लें हम कुछ नए समझोते

तुम अपने, कुछ हम अपने अकेलेपन से

 

                      ---------

 

--- विजय निकोर

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 629

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on May 23, 2016 at 3:34pm

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीया कल्पना जी।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 8, 2016 at 9:22pm

गूँजते हैं पूनो में सीने में

अमावस में भयानक वीरानों में

बरसातों में, पीड़ा की रातों में

ध्वनिगुँजित स्नेहमय स्वर

उखड़े-उखड़े अधबने अधूरे

वेदनामयी मूक पुकार बन आए

कि दर्द ही अब हो जैसे गहन सत्य

दर्द ही ज़िन्दगी का इमान बना हो

वाह बहुत बढ़िया | बधाई स्वीकारें आदरणीय | 

Comment by vijay nikore on April 25, 2016 at 8:01pm

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय रवि जी।

Comment by vijay nikore on April 25, 2016 at 4:16pm

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रामबली जी।

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 2:31pm

आदरणीय विजय निकोर जी  बहुत खूबसूरत प्रस्तुति बधाई स्‍वीकार करें । सादर । 

Comment by vijay nikore on April 25, 2016 at 1:59pm

// इतने सुन्दर भाव इतनी विदग्ध कल्पना  आपके ही बस का है //

मुझको और इस रचना को आपने इन अमूल्य शब्दों से इतना मान दिया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

Comment by vijay nikore on April 24, 2016 at 8:14pm

//अति  सुंदर  भाव  रचित  रचना //

सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by vijay nikore on April 10, 2016 at 7:45am

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय विजय शंकर जी।

Comment by रामबली गुप्ता on April 6, 2016 at 11:54am
वाह वाह आदरणीय विजय निकोर जी दिल को छू गयी रचना
सादर बधाई स्वीकार करें।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 5, 2016 at 10:16am

आओ बैठो, बैठो कुछ और  निकट

इस झुकी-झुकी सँवलाई साँझ हम कर लें

विदा के बाद पलट गई ज़िन्दगी के बाद की बातें

और ऐसे में कर लें हम कुछ नए समझोते

तुम अपने, कुछ हम अपने अकेलेपन से---------- आदरणीय निकोर जी . इतने सुन्दर भाव इतनी विदग्ध कल्पना  आपके ही बस का है , आपकी कलम को नमन ,  सादर . 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service