For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( पत्थर निकला)

ग़ज़ल (पत्थर निकला ) -------------------------

- 2122 ---1122 ---1122 --22

मेरि बर्बाद मुहब्बत का  ये   मंज़र    निकला  /

 जिसको उल्फत का ख़ुदा समझा वो पत्थर निकला /

दिल को तस्कीन तो हासिल हुई हमदर्दी   से

पर निगाहों  से नहीं  ग़म का समुन्दर  निकला /

ज़ुल्म ने जब भी ज़माने में उठाया है सर

लेके ख़ुद्दार क़लम अपना सुख़नवर   निकला /

नीम शब मिलने की तदबीर भी बेकार गयी

सुबह होते ही गली कूचे में महशर  निकला /

यूँ ही दीवार खड़ी तो न हुई है  शक की

जो था क़ासिद वो किसी और का मुखबर निकला /

लग रहा है ये ख़ुशी रूठ गयी है मुझ से

वक़्ते दीदार रुखे  यार भी मुज़्तर  निकला /

खुल गया वक़्ते नज़अ राज़े मुहब्बत आख़िर

लब से तस्दीक़ मेरे जैसे ही  दिलबर निकला /

(मौलिक व अप्रकाशित )    

Views: 1171

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2016 at 12:32am

बहुत खूब 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 2, 2016 at 9:34pm

मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , जनाब सलीम शेख़ साहिब और जनाब जयनित कुमार साहिब , ग़ज़ल पसंद करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया / ....... अर्ज़ यह है कि महशर का मतलब क़ियामत ,आफत ,शोरो शर वग़ैरा भी होता है / निकलना का मतलब उठना भी होता है / महशर निकला का मतलब शेर 4 के सानी मिसरे में क़ियामत उठना /शोरो शर होना लिया गया है /   सलीम साहिब दुरुस्त लफ़्ज़ मुखबर (अरबी ) ही है मुखबिर नहीं। ...... महरबानी

Comment by saalim sheikh on February 2, 2016 at 7:15pm

अच्छी ग़ज़ल है तस्दीक़ साहब , दाद कुबूल करें , महशर दरअसल अरबी का लफ्ज़ है, इस्म-ए-मकां है ,महशर= हश्र होने की जगह जैसे मक़तल ( क़त्ल होने की जगह ) या मस्जिद ( सज्दा करने की जगह ) , 'महशर निकला' शायद सही नहीं होगा , साथ ही 'मुखबर' की जगह 'मुखबिर' सही लफ्ज़ होगा

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 2, 2016 at 6:41pm
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने आदरणीय तस्दीक जी..

पर "महशर" निकल कैसे सकता है? वो तो एक प्रक्रिया होती है!
आदरणीय समर कबीर जी की बातों से सहमत हूँ।।
Comment by Ravi Shukla on February 2, 2016 at 2:24pm

आदरणीय तसदीक अहमद जी और आदरणीय समर साहब  आप दोनो को बहुत बहुत शुक्रिया लफ्ज का विस्‍तृत मानी समझाने के लिये । जानकारी में इजाफा हुआ । ओ बी ओ में अपनी मौजूदगी को आप मार्गदर्शन देकर और हम कुछ ग्रहण करके  सार्थक  कर रहे है । सादर ।

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on February 2, 2016 at 12:27pm

gud gud

Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2016 at 1:01am

आदरणीय तस्‍दीक अहमद जी, बेहतरीन रचना है हार्दिक बधाई आपको ! सादर

Comment by Samar kabeer on February 1, 2016 at 10:30pm
जनाब रवि शुक्ल जी आदाब,"नज़ा"उस कैफ़ियत को कहते हैं जो तवील बीमारी के बाद मरने से पहले मरीज़ पर तारी होती है जिससे अहबाब ये अंदाज़ा लगा लेते हैं कि मरीज़ कुछ देर का महमान है ,इस हालत को "जां कनी"भी कहते हैं !
Comment by Samar kabeer on February 1, 2016 at 10:22pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल से नवाज़ा आपने मंच को,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं !
"महशर निकला"से में मुत्तफ़िक़ नहीं,महशर बपा होता है,निकलता नहीं !
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 1, 2016 at 9:28pm

जनाब रवि शुक्ल  साहिब ,ग़ज़ल पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया ,मेहरबानी। ..... वक़्ते नज़अ का मतलब है दम निकलने से पहले /..... निगाह का मतलब आँख भी होता है। इस शेर को किसी एक पर टारगेट नहीं किया है बल्कि जनरल कहा है / आपने जैसा लिखा वो भी हो सकता है /  सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
22 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service