For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

डरे जो तिमिर से भला क्या मिलेगा - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’(गजल)

122    122    122    122
**************************
डरे जो तिमिर से भला क्या मिलेगा
लड़ो  जुगनुओं  का  सहारा  मिलेगा /1

हमेशा   नहीं   यूँ   अँधेरा मिलेगा
भले  ही रहे कम  उजाला मिलेगा /2

कहावत है तम की जहाँ बस्तियाँ हों
वहीं   दीपकों   का   बसेरा   मिलेगा /3

चलो  ढूँढते  हैं   उसे   रात  भर अब
कहीं तो तिमिर का किनारा मिलेगा /4

भटक जाओ गर तुम गगन को निहारो
बताता  दिशा   इक  वो  तारा  मिलेगा /5

फकत जागने की  करो कोशिशें अब
जगोगे  अगर   तो   सवेरा   मिलेगा /6

मौलिक व अप्रकाशित
© लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 812

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2016 at 5:39am

आ० भाई श्री सुनील जी पशंसा के लिए आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2016 at 5:38am

आ० भाई भाई मिथिलेश जी ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2016 at 5:36am

आ० भाई विजय जी प्रशंसा के लिए आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2016 at 5:35am

आ० भाई गोपालनारायण जी अपनी उपस्थिति से ग़ज़ल का मन बढ़ने के लिए हादिक धन्यवाद l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2016 at 5:34am

आ० भाई गिरिराज जी उत्साहवर्धन के लिए आभार l

Comment by shree suneel on December 9, 2015 at 9:21pm
चलो ढूँढते हैं उसे रात भर अब
कहीं तो तिमिर का किनारा मिलेगा... क्या बात!

भटक जाओ गर तुम गगन को निहारो
बताता दिशा इक वो तारा मिलेगा... बहुत बढि़या
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ आपको. अन्य अशआर भी काबिले तारीफ़ हैं.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 7, 2015 at 4:29am

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी, बेहतरीन अशआर से सजी शानदार ग़ज़ल हुई है. ग़ज़ल के हर शेर का सकारात्मक भाव और आशावादी होने के लिए प्रेरित करना भा गया. बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 6, 2015 at 1:25pm
डरे जो तिमिर से भला क्या मिलेगा
लड़ो जुगनुओं का सहारा मिलेगा /1
बहुत खूब , आदरणीय लक्षमण , बहुत बहुत बधाई , सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 6, 2015 at 12:13pm

डरे जो तिमिर से भला क्या मिलेगा
लड़ो  जुगनुओं  का  सहारा  मिलेगा /-------------- बहुत सुन्दर धामी जी .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 6, 2015 at 10:59am

क्या बात है , आ. लक्ष्मण भाई खूब सूरत मतला हुआ है -
डरे जो तिमिर से भला क्या मिलेगा
लड़ो  जुगनुओं  का  सहारा  मिलेगा  --  बहुत खूब

इस शे र  को अगर ऐसे कहें तो  -
चलो  ढूँढते  हैं   उसे   रात  भर अब
कहीं रोशनी का किनारा मिलेगा     (  तिमिर को ढूढ्ना मुझे ख़टक रहा है )

और ये शेर भी खूब कहा है

फकत जागने की  करो कोशिशें अब
जगोगे  अगर   तो   सवेरा   मिलेगा  --- वाह !  गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service