For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आप से इस हृदय का अनुबंध तोड़ा ना गया

2122 2122 2122 212
प्रीत या अनुराग का अनुबंध कब तोड़ा गया।
इस हृदय का आप से सम्बन्ध कब तोड़ा गया।।

तोड़ देता किस तरह से साँस अपनी ही स्वयं।
धड़कनों पर आपका प्रतिबन्ध कब तोड़ा गया।।

तोड़ देता किस तरह से साँस अपनी ही स्वयं।
धड़कनों पर आपका प्रतिबन्ध कब तोडा गया।।

गीत मैं सुर हो तुम्हीं हाँ शब्द मैं सरगम तुम्हीं।।
इस पुरुष का तुझ प्रकृति से बन्ध कब तोड़ा गया।।

राजपथ पर ख़्वाब के हो हमसफ़र बस एक तुम।
तुझसे अरमानों का सब गठबन्ध कब तोड़ा गया।।

खोजता हूँ मैं तुम्हें ही यत्र हाँ सर्वत्र सुन।
चक्षु दर्पण से प्रिये छविबन्ध कब तोड़ा गया।।

मौलिक अप्रकाशित

Views: 636

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Madan Mohan saxena on September 28, 2015 at 3:44pm

अच्छी ग़ज़ल

तोड़ देता किस तरह से साँस अपनी ही स्वयं।
धड़कनों पर आपका प्रतिबन्ध कब तोडा गया।।

गीत मैं सुर हो तुम्हीं हाँ शब्द मैं सरगम तुम्हीं।।
इस पुरुष का तुझ प्रकृति से बन्ध कब तोड़ा गया।।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2015 at 8:49am

आदरणीय पंकज भाई ,  ग़ज़ल अच्छी कही है आपने आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

मुझे आपकी गज़ल के रदीफ कर शंका हो रही है -- आपने,  कब तोड़ा गया   रदीफ माना है ,  और मुझे शंका है  -- बन्ध कब तोड़ा गया , पूरी रदीफ मान लिये जाने की  , अगर ऐसा हुआ तो  आपकी गज़ल बिना काफिया के हो जायेगी , और ख़ारिज हो जायेगी । आप इंतिजार कर सकते हैं गुणिजनों का ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 24, 2015 at 10:36pm
तोड़ देता किस तरह से साँस अपनी ही स्वयं।
धड़कनों पर आपका प्रतिबन्ध कब तोड़ा गया।।


ये शेर दो बार लिख गया है; गलती से।।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 24, 2015 at 10:34pm
आदरणीय काँटा रॉय मैम सादर अभिवादन
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 24, 2015 at 10:33pm
आदरणीय गोपाल सर सादर आभार्
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 24, 2015 at 7:34pm
आदरणीय मिथिलेश सर सादर अभिवादन।
सुझाव अतिउत्तम है;इसे यथावत संशोधित कर देता हूँ।।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 24, 2015 at 7:33pm

पकज  जीआपकी बेहतरीन कोशिश पर  आपको बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 24, 2015 at 1:03pm

आदरणीय पंकज जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. मैं आदरणीय मनोज भाई जी की बात से सहमत हूँ कि गजल में ना की जगह न का प्रयोग होता है जिसका वज्न 1 होता है. अतः उनकी इस्लाह // 212 की जगह 22 कर ले// या इसी बह्र में कहना हो तो कुछ यूं किया जा सकता है-

प्रीत या अनुराग का अनुबंध कब तोड़ा  गया।
इस हृदय का आप से सम्बन्ध कब तोड़ा  गया।

तोड़ देता किस तरह से साँस अपनी ही स्वयं,
धड़कनों पर आपका प्रतिबन्ध कब तोड़ा  गया।


Comment by kanta roy on September 24, 2015 at 1:01pm
कितने सुंदर भाव है हर अशआर के ! अनुरागी मन का ये राग मन को भा गया । बेहतरीन , बधाई स्वीकार किजिए आदरणीय पंकज जी ।
Comment by मनोज अहसास on September 24, 2015 at 7:40am
आदरणीय पंकज भाई नमस्कार
बहर को साधने के आपके प्रयास की बधाई
अच्छी ग़ज़ल कही है आपने
मंच के ज्ञानी गुणी रचनाकारों का निर्देश है कि गजल में ना की जगह न का प्रयोग होता है ना कोई शब्द नहीं है
ना को न करें
ये एक मात्रिक ही रहेगा
ऐसा करने पर या तो 212 की जगह 22 कर ले
और पुनः पूरी ग़ज़ल उस पर साधे
या फिर न की जगह कोई दो मात्रिक शब्द लें

जैसे जा, क्यों ,तो ,जो आदि
ग़ज़ल के विषय में कुछ और निवेदन भी है
पहले ये काम आप edit करके कर ले
और पूरी ग़ज़ल की एक बार मात्र गणना पुनः करें
संयुक्त अक्षर पर थोडा और ध्यान दें
मंच पर संयुक्त अक्षरों की गणना का तरीका बताया गया है वो देखे


आपको बहुत बधाई
और आदरणीय मंच से मार्गदर्शन का निवेदन
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
10 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service