For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तभी हुई है ग़ज़ल ( इस्लाह के लिये)

म'फ़ा'इ'लुन फ़'इ'लातुन म'फ़ा'इ'लुन फ़ा'लुन
1212 1122 1212 112

सजल नयन से नदी उतरी तो हुई है ग़ज़ल।
जो पीर वाली फसल निखरी तो हुई है ग़ज़ल।।

न पूछो मिलती किधर हमको जी प्रेरणा ये कहाँ ।
हंसी प्रियम के अधर बिखरी तो हुई है ग़ज़ल।।

कभी कहीं जो सुवासित हवायें बहनें लगी।
जो रूपसी कहीं सव्री तो हुई है ग़ज़ल।।

कोई पथिक जो चला जीवन की इस कठिन सी डगर।।
किसी के सिर पे पड़ी गठरी तो हुई है ग़ज़ल।।

कहीं पे रिश्ता जो नाता है भंग होता कभी।
जो कोष लूटे कहीं प्रहरी तो हुई है ग़ज़ल।।

जहाँ तनिक भी हाँ अंतर कहीं बचा ही नहीं।
जो राम जी से मिली सबरी तभी तो है ग़ज़ल।।

मौलिक अप्रकाशित

Views: 764

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 5, 2015 at 2:08pm
जहाँ तनिक भी हाँ अंतर कहीं बचा ही नहीं।
जो राम जी से मिली सबरी तभी तो है।।

इस शेर को निम्नवत् पढ़ा जाये-
जहाँ तनिक भी हाँ अंतर कहीं बचा ही नहीं।
जो राम जी से मिली सबरी तो हुई है ग़ज़ल।।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 28, 2015 at 12:13pm
आदरणीय मिथिलेश सर रात में ही आपकी इस्लाह की स्वीकृति अभिव्यक्त कर रहा था; किन्तु बार बार मोबाइल बंद हो जा रहा था।

आपकी इस्लाह सदैव शिरोधार्य होती है।
आपके सुझाव पर ही संशोधन हुआ है।

साभार।

फिर आता हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 28, 2015 at 11:49am

आदरणीय पंकज जी, बढ़िया बदलाव किया है बस ग़ज़ल के आखिरी मिसरे में कल वाली ही रदीफ़ है उसे भी सही कर लीजियेगा. बह्र का चयन भी बेहतरीन हुआ है. कल की बह्र से बिलकुल अलग और सटीक. जिन मिसरों में बदलाव किया है वो भी अच्छा है. मेरी इस्लाह जिस बह्र पर थी उसे कुछ मिसरों के साथ लिख रहा हूँ ताकि इस बदलाव से मेरी टिप्पणी निरर्थक न लगे. 

1212 212 22 1212 212


सजल नयन से नदी उतरी तभी हुई है ग़ज़ल।
जो पीर वाली फसल निखरी तभी हुई है ग़ज़ल।।

न पूछो मिलती किधर हमको जी प्रेरणा ये कहाँ ।
हंसी प्रियम के अधर बिखरी तभी हुई है ग़ज़ल।।

इस बेहतरीन प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई. मेरी इस्लाह पर आप चर्चा करेंगे अथवा प्रत्युत्तर देंगे इतनी आशा तो होती ही हैं न?

मेरी इस्लाह को कृपया अन्यथा न लीजियेगा. यहाँ सीखने-सिखाने की परंपरा के अनुक्रम में  हम सभी समवेत सीख रहें है. 

हार्दिक शुभकामनायें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2015 at 11:00am

आदरनीय पंकज भाई , गज़ल की बाबत आ. मिथिलेश भाई ने बहुत कुछ कह दिया है , ख़याल की जियेगा । गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 28, 2015 at 10:52am

आ० मिथिलेश जी के कथन के बाद कुछ कहना बेमानी होगी .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 27, 2015 at 11:23pm

अब देखियें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 27, 2015 at 11:22pm

तकाबुले रदीफेन दोष आ रहा था मेरे इस्लाही मिसरे में इसलिए इसे यूं कहें 

न पूछो हमको किधर से मिलती नवल धवल सी ये प्रेरणायें 
हंसी प्रियम के अधर में बिखरी तभी हुई है ग़ज़ल हमारी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 27, 2015 at 11:20pm

आदरणीय पंकज जी लगता है ये कोई नई बह्र है चूंकि इस बह्र से वाकिफ़ नहीं हूँ इसलिए प्रस्तुति का लुत्फ़ नहीं ले पा रहा हूँ. यद्यपि ये मिसरे 121-22x4 बह्र के एकाध अरकान को कम कर बनाई हुई लग रही है अगर इसे यूं इस मकबूल बह्र में लिखा जाए तो कैसा रहेगा-

121-22---121-22---121-22---121-22

सजल नयन से नदी- सी उतरी तभी हुई है ग़ज़ल हमारी 
जो पीर वाली फसल में निखरी तभी हुई है ग़ज़ल हमारी 

न पूछो हमको किधर से मिलती ये प्रेरणायें नवल धवल सी
हंसी प्रियम के अधर में बिखरी तभी हुई है ग़ज़ल हमारी 

कभी कहीं जो सुवासितों सी हवाएं बहती दिशा दिशा में
सुमन सजे तो लटें जो संवरी तभी हुई है ग़ज़ल हमारी 

कोई पथिक जो चला है जीवन की इस कठिन सी डगर पे यारों 
उसी के सिर से उतारी गठरी तभी हुई है ग़ज़ल हमारी 

जहाँ तनिक भी रहे न अंतर मनुज को केवल मनुज ही माने ।
जो राम जी से मिली है शबरी तभी हुई है ग़ज़ल हमारी 

अगर बह्र  पसंद आये तो सभी मिसरे इसी बह्र में आप बदल सकते है, और अगर आपकी बह्र कोई मान्य बह्र है तो मेरा मार्गदर्शन करें मैं अपनी इस्लाह वापिस ले लूँगा.  एक निवेदन और है कि आप अपनी लिखी दो पंक्तियों के आधार पर बह्र लिखकर फिर उसी का निर्वाह करते हुए ग़ज़ल न लिखें. ऐसी ग़ज़लों से डायरियों या वेब के केवल पन्ने भरे जा सकते है लेकिन इनकी अदब की दुनिया में कोई महत्ता नहीं है.  बल्कि पहले बह्र का चयन करें फिर उस पर ग़ज़ल लिखें. देखिये कैसी शानदार ग़ज़ल उतरती है फलक पर. जैसे मुशायरे में आपने बहर पर ग़ज़ल कही है. दिल खुश हो गया था पढ़कर. आप लिखते हुए काफ़ी आगे आ गए है अब वापिस लौटना ठीक है क्या? 

अगर आप चाहे तो इस मंच पर हुए मुशायरों के पुराने आयोजनों और मंच पर प्रस्तुत हुई ग़ज़लों से बहरें लेकर गज़लें लिखे. मैंने भी यही प्रक्रिया अपनाई थी लगभग दस महीने पहले और उसका लाभ भी हुआ है. ये अपने व्यक्तिगत अनुभव से कह रहा हूँ. आशा है आप मेरी बातों के मर्म को समझेंगे. 

गलतियों को इन्कलाब का नाम  देने या नए प्रयोग के बहाने टालने से बेहतर है गलतियाँ न करना. संभवतः मैं अपनी बात स्पष्ट कर सका हूँ. सादर 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 27, 2015 at 11:20pm
आदरणीय मिथिलेश सर आपका कमेंट मेरे ईमेल में notify तो हो रहा मगर यहाँ नहीं दिख रहा।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 27, 2015 at 9:41pm
अभी तक मेरे इस प्रयास पर गुरुजनो का आशीष नहीं मिला; मैं प्रतीक्षारत हूँ......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे*******तन झुलसे नित ताप से, साँस हुई बेहाल।सूर्य घूमता फिर  रहा,  नभ में जैसे…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी को सादर अभिवादन।"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
23 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

.ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा, मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा. . इश्क़ के…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. //हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से…"
yesterday
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"वाह वाह आदरणीय नीलेश जी पहली ही गेंद सीमारेखा के पार करने पर बल्लेबाज को शाबाशी मिलती है मतले से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service