For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन


तू भले कुछ भी कहे मैं कामना करता रहूँगा
रूप रस की चाहना- आराधना करता रहूँगा।
जल रहा संसार खुद से आग अपनी ही जलाये
बाँट आया प्यार घर- घर याचना करता रहूँगा।
जो लगाते आग चलते ज्वाल उनको हो मुबारक
मैं चला हूँ मेघ बनकर साधना करता रहूँगा।
दे रही जो दर्द चपला कर सकूँ बे-दर्द उसको
हो धरा मैं सोंख लूँ यह कामना करता रहूँगा।
आदमी हो आदमी का हो गया सब भूलकर भी
आदमी के हित रहूँ मैं प्रार्थना करता रहूँगा।

.
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Views: 441

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on September 27, 2015 at 7:31pm

आदरणीय मिश्रा जी, प्रेरणा देने हेतु आभार आपका। 

Comment by Manan Kumar singh on September 27, 2015 at 7:30pm

आदरणीय वामनकर जी,गजल की सराहना कर प्रेरणा देने के लिए आभार आपका। 

Comment by Manan Kumar singh on September 27, 2015 at 7:28pm

आदरणीय गोपाल भाई, आभार आपका। 

Comment by Manan Kumar singh on September 27, 2015 at 7:28pm

अदरणीय रवि जी, आभार आपका, सादर। 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 24, 2015 at 3:22pm
जो लगाते आग चलते ज्वाल उनको हो मुबारक
मैं चला हूँ मेघ बनकर साधना करता रहूँगा।

बहुत खूब आ.मनन जी बेहद सुन्दर गजल हुयी है..हार्दिक बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 24, 2015 at 12:15pm

आदरणीय मनन जी बह्र-ए-रमल को खूब निभाया है. बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. आपको हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 23, 2015 at 8:48pm

बहुत बढ़िया.  प्रवाह तो देखते ही बनता है .

Comment by Ravi Shukla on September 23, 2015 at 1:21pm

आदरणीय मनन जी

ग़ज़ल में शिल्‍प के अनुकूल सुन्‍दर प्रवाह बन पड़ा है बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
20 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service