For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मजहब जिसने इंसानों को आपस में जोड़ा है

मजहब जिसने इंसानों को आपस में जोड़ा है 

आज उसी मजहब ने क्यूँ दिल इंसा का तोडा है 

कितनी सुंदर धरती है ये कितने सुंदर मंजर 

पर राहों में उल्फत की क्यूँ नफरत का रोड़ा है 

जिन की ख्वाइश धन दौलत दुनिया भर की हथिया लें 

गर समझें तो आज समझ लें ये जीवन थोडा है 

राम नाम जिस पाहन पर वो सागर में उतराए 

डूब गया वो राम नाम के बिन जिसको छोड़ा है 

तब तक चैन कहाँ पाया है इस इंसा ने जग में 

जब तक होकर बेलगाम दौड़ा मन का घोडा है 

बड़े बड़े दिग्गजों शूरमा के तुम नाम गिनाते 

एक बता दो वक़्त की जिसने धारा को मोड़ा है 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 779

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on July 12, 2015 at 5:17pm

कितनी सुंदर धरती है ये कितने सुंदर मंजर 

पर राहों में उल्फत की क्यूँ नफरत का रोड़ा है 

जिन की ख्वाइश धन दौलत दुनिया भर की हथिया लें 

गर समझें तो आज समझ लें ये जीवन थोडा है ...बेहद उम्दा...बहुत बधाई

Comment by विनय कुमार on July 8, 2015 at 6:35pm

// एक बता दो वक़्त की जिसने धारा को मोड़ा है // , वाह , वाह , बढ़िया ग़ज़ल हुई है , बधाई आदरणीय..

Comment by vijay nikore on July 8, 2015 at 6:20pm

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

Comment by shree suneel on July 8, 2015 at 6:16pm
तब तक चैन कहाँ पाया है इस इंसा ने जग में
जब तक होकर बेलगाम दौड़ा मन का घोडा है.. व्वाहह! ख़ूब!!
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय अाशुतोष मिश्रा जी . बधाइयाँ आपको.
Comment by kanta roy on July 7, 2015 at 9:06am
तब तक चैन कहाँ पाया है इस इंसा ने जग में 
जब तक होकर बेलगाम दौड़ा मन का घोडा है........ मन की बेलगामी और चैन का बहुत ही सुंदर यह ताना बाना है । वक्त के धारों को मोडने वाले विरले ही सदियों में जन्म लेते है । वो हम जैसे नहीं , वो सारे मजहबों से परे होते है ॥ बधाई आपको शानदार शेरों से सजी इस बेहतरीन गजल के लिए आदरणीय डा. आशुतोष मिश्रा जी
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 6, 2015 at 10:40pm

आदरणीय मिथिलेश जी शंका के निवारण के लिए धन्यवाद ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 6, 2015 at 10:22pm
काफ़िया दुरुस्त है आशुतोष जी बस इस काफ़िया के लफ़्ज़ों की कमी के लिए टोटा प्रयुक्त किया था।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 6, 2015 at 10:15pm

आदरणीय जवाहर जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल आभार सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 6, 2015 at 10:14pm

आदरणीय मिथिलेश जी ..रचना आपको पसंद आये मेरा प्रयास सार्थक हुआ ..काफिया का टोटा ..उर्दू  हिंदी में लिखने वाला मामला है या और कुछ ..हार्दिक धन्यवाद के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 6, 2015 at 10:10pm

आदरणीय पारी जी .रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से मैं उत्साहित महसूस कर रहा हूँ सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service